Vasudev sharan agrawal ka jeevan parichay-वासुदेव शरण अग्रवाल

Vasudev sharan agrawal ka jeevan parichay-वासुदेव शरण अग्रवाल

नमस्कार दोस्तों, इस लेख में आप Vasudev sharan agrawal ka jeevan parichay, साहित्यिक परिचय, कार्यों के बारे में जानेंगे, इसलिए इस लेख को पूरा पढ़ें और उनके बारे में जानें। इस आर्टिकल को पढ़कर आप भी अपनी परीक्षाओं की तैयारी कर सकते हैं। यह जीवनी बहुत ही सरल भाषा में है जो आपको जल्दी याद हो जाएगी इसलिए वाशुदेव शरण अग्रवाल की जीवनी पढ़ें और जानें।

Vasudev sharan agrawal ka jeevan parichay

नामवासुदेवशरण अग्रवाल
जन्मसन् 1904 ई०
जन्म-स्थान ग्राम – खेड़ा (मेरठ)
शिक्षाएम०ए०
भाषाविषयानुकूल, प्रौढ़ और परिमार्जित खड़ीबोली
शैलीविचारात्मक, गवेषणात्मक, व्याख्यात्मक
रमुख रचनाएँ पृथिवीपुत्र, भारत की एकता, कल्पवृक्ष, माता भूमि
निधन सन् 1967 ई०

वासुदेव शरण अग्रवाल का जीवन परिचय

Vasudev sharan agrawal का जन्म सन् 1904 ई० में मेरठ जनपद के खेड़ा ग्राम में हुआ था। इनके माता-पिता लखनऊ में रहते थे; अतः इनका बाल्यकाल लखनऊ में ही व्यतीत हुआ। यहीं इन्होंने प्रारम्भिक शिक्षा भी प्राप्त की। इन्होंने 'काशी हिन्दू विश्वविद्यालय' से एम० ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। 'लखनऊ विश्वविद्यालय' ने 'पाणिनिकालीन भारत' शोध-प्रबन्ध पर इनको पी-एच० डी० की उपाधि से सम्मानित किया।
यहीं से इन्होंने डी० लिट्० की उपाधि भी प्राप्त की। इन्होंने पालि, संस्कृत, अंग्रेजी आदि भाषाओं तथा प्राचीन भारतीय संस्कृति और पुरातत्त्व का गहन अध्ययन किया और इन क्षेत्रों में उच्चकोटि के विद्वान् माने जाने लगे। ये काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के भारती महाविद्यालय में 'पुरातत्त्व एवं प्राचीन इतिहास विभाग' के अध्यक्ष रहे। हिन्दी के इस प्रकाण्ड विद्वान् का सन् 1967 ई० में निधन हो गया।

Vasudev sharan agarwal

Vasudev sharan agrawal ka sahityik parichay

डॉ. अग्रवाल लखनऊ और मथुरा के पुरातत्व संग्रहालय के निरीक्षक, 'केंद्रीय पुरातत्व विभाग' के निदेशक और 'राष्ट्रीय संग्रहालय, दिल्ली' के अध्यक्ष थे।

डॉ. अग्रवाल ने मुख्यतः पुरातत्व पर ध्यान केन्द्रित किया। अपने लेखन में, उन्होंने संस्कृति और प्राचीन भारतीय इतिहास के वास्तविक सार के साथ-साथ प्रागैतिहासिक, वैदिक और पौराणिक साहित्य का सार भी व्यक्त किया। जायसी के “पद्मावत” की जीवनरक्षक व्याख्या और बाणभट्ट के “हर्षचरित्र” का सांस्कृतिक विश्लेषण प्रस्तुत करके उन्होंने हिंदी साहित्य को गौरवान्वित किया। डॉ. अग्रवाल एक शोधकर्ता, निबंधकार और संपादक के रूप में भी प्रसिद्ध हैं।

Vasudev sharan agrawal ki rachna

डॉ. अग्रवाल ने निबंध रचना, शोध एवं संपादन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किया है। उनकी प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं-

  • निबन्ध-संग्रह — पृथिवीपुत्र, कला और संस्कृति, कल्पवृक्ष, भारत की एकता, माता भूमि, वाग्धारा आदि।
  • शोध- पाणिनिकालीन भारत |
  • सम्पादन — जायसीकृत पद्मावत की संजीवनी व्याख्या, बाणभट्ट के हर्षचरित का सांस्कृतिक अध्ययन। इसके अतिरिक्त इन्होंने पालि, प्राकृत और संस्कृत के अनेक ग्रन्थों का भी सम्पादन किया।

Vasudev sharan agarwal ki bhasha shaili-भाषा-शैली

भाषा-शैली : डॉ. अग्रवाल एक खोजी विद्वान थे; अतः उनकी भाषा शैली में उत्कृष्ट पांडित्य देखा जा सकता है। उनकी भाषा-शैली की विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

भाषा डॉ. अग्रवाल की भाषा शुद्ध एवं परिष्कृत खड़ीबोली है, जिसमें सर्वत्र सुगमता एवं स्पष्टता दृष्टिगोचर होती है। उन्होंने अपनी भाषा में अनेक देशज शब्दों का प्रयोग किया है, जैसे अनगढ़, कोख, चिलकाटे आदि। इन शब्दों के प्रयोग से न केवल भाषा में सरलता एवं बोधगम्यता उत्पन्न हुई है, बल्कि उसमें व्यावहारिक भाषा का भी समावेश हुआ है। उनकी भाषा में उर्दू, अंग्रेजी आदि की शब्दावली, मुहावरों और कहावतों का प्रयोग प्राय: नहीं हुआ है, अत: उनकी परिपक्व, संस्कृतनिष्ठ एवं सरल भाषा में गंभीरता के साथ-साथ बोधगम्यता, प्रवाह और लालित्य भी है।

शैली — उनकी शैली की विविध विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

  1. विचारप्रधानता (विचारप्रधान शैली) – डॉ० अग्रवाल ने प्रायः गम्भीर और चिन्तनपूर्ण विषयों पर लेखनी चलाई है; अतः इनकी प्रमुख शैली विचारप्रधान ही है।
  2. गवेषणात्मकता ( गवेषणात्मक शैली) – उन्होंने पुरातात्विक अन्वेषण से संबंधित अपने कार्यों में खोजपूर्ण शैली अपनाई है। इसमें वाक्य कहीं-कहीं लम्बे हैं तो कहीं-कहीं अप्रचलित एवं जटिल शब्दावली के प्रयोग के कारण कठिन हो गये हैं, परन्तु भाषा का प्रवाह कहीं भी कम नहीं हुआ है।
  3. व्याख्यात्मकता (व्याख्यात्मक शैली) — डॉ. अग्रवाल ने कठिन एवं अस्पष्ट विषयों को आसानी से समझाने के लिए व्याख्यात्मक शैली का प्रयोग किया है। ‘जायसीस पद्मावत की टीका’ भी इसी शैली में लिखी गई है।
  4. उद्धरणों का प्रयोग (उद्धरण शैली) – डॉ. अग्रवाल का अध्ययन बहुत व्यापक और गहन था। वह संस्कृत के महान विद्वान थे। अपनी बात को मजबूत करने के लिए उन्होंने अक्सर संस्कृत से उद्धरण दिए हैं। कभी-कभी भावुक होकर भी वह संस्कृत से उद्धरण देने लगता है; यथा-माता भूमिः पुत्रोहं पृथिव्याः; नमो मात्रे पृथिव्यै। नमो मात्रे पृथिव्यै।

हिन्दी – साहित्य में स्थान Vasudev sharan agrawal का

पुरातत्व विशेषज्ञ डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल हिन्दी साहित्य में विद्वान एवं सुशिक्षित निबंधकार के रूप में प्रसिद्ध हैं। पुरातत्व एवं अनुसंधान के क्षेत्र में इनकी बराबरी करना बहुत कठिन है। वे एक विद्वान टिप्पणीकार और साहित्यिक ग्रंथों के कुशल संपादक के रूप में भी प्रसिद्ध हैं। अपनी विश्लेषण पद्धति की मौलिकता एवं विचारशीलता के कारण वे सदैव याद किये जायेंगे

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