Subhadra kumari chauhan jivan parichay-सुभद्रा कुमारी चौहान
देश में कई बहादुर व्यक्तियों ने चेहरे पर मुस्कान लाते हुए अपने देश की आजादी की रक्षा में अपनी जान दे दी। इस देश में एक ऐसी कवयित्री जो राष्ट्रीय स्वतंत्रता की लड़ाई में सक्रिय रूप से शामिल थी, उनमें से एक थी सुभद्रा कुमारी चौहान वह अपनी कविताओं, कहानी कहने और बहादुरी के माध्यम से उन्होंने लोगों को स्वतंत्रता की इच्छा रखने के लिए प्रेरित किया। आपको तुरंत उनके बारे में और अधिक जानने इस आर्टिकल को पूरा पढ़े। इस लेख में आपको Subhadra kumari chauhan jivan parichay, साहित्यिक परिचय और रचनाओं के बारे में पढ़ने को मिलेगा।
सुभद्रा कुमारी चौहान का संछिप परिचय
नाम | सुभद्राकुमारी चौहान |
पिता का नाम | रामदास सिंह |
जन्म | सन् 1904 ई० |
जन्म-स्थान | इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) |
शिक्षा. | क्रॉस्थवेट गर्ल्स कॉलेज की छात्रा, देश सेवा में लग जाने के कारण शिक्षा अधूरी। |
भाषा | साहित्यिक खड़ीबोली। |
शैली | ओजयुक्त व्यावहारिक। |
प्रमुख रचनाएँ | सीधे-सादे चित्र, बिखरे मोती उन्मादिनी, मुकुल और त्रिधारा । |
निधन | सन् 1948 ई० |
साहित्य में स्थान | वीर रस के अतिरिक्त नारी-हृदय की भावनाओं का सफल प्रतिनिधित्व करनेवाली कवयित्री के रूप में श्रेष्ठ स्थान। |
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![Subhadra kumari chauhan jivan parichay](https://gyanloud.com/wp-content/uploads/2023/10/Add-a-heading5-1024x538.jpg)
सुभद्रा कुमारी चौहान का जीवन परिचय हिंदी में
क्रांति की अग्रदूत सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म 1904 में इलाहाबाद जिले के निहालपुर गांव में हुआ था। उनके पिता रामनाथ सिंह एक सुशिक्षित, समृद्ध और सम्मानित व्यक्ति थे। उनकी प्राथमिक शिक्षा क्रोस्थवेट गर्ल्स कॉलेज में हुई और 15 वर्ष की उम्र में उनका विवाह खंडवा (मध्य प्रदेश) के ठाकुर लक्ष्मण सिंह चौहान से हुआ। उनके पति ब्रिटिश शासन के विरुद्ध राष्ट्रीय आंदोलनों में भाग लेते थे। सुभद्रा कुमारी अपने पति के साथ राजनीतिक आंदोलनों में भी भाग लेती रहीं, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा। असहयोग आंदोलन में भाग लेने के कारण उनका अध्ययन क्रम बाधित हो गया।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से प्रेरित होकर उन्होंने देशभक्ति पर कविताएं लिखना शुरू किया। वह हिंदी काव्य जगत की एकमात्र कवयित्री थीं, जिन्होंने अपनी सशक्त कविता के माध्यम से लाखों भारतीय युवाओं को स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। ‘झाँसी वाली रानी थी’ और ‘वीरों का कैसा हो वसंत’ कविताएँ युवाओं में क्रांति की ज्वाला भड़काती रहीं। पं. से भी उन्हें पर्याप्त प्रोत्साहन मिला। माखनलाल चतुवेर्दी का परिणाम यह हुआ कि उनकी देशभक्ति का रंग और भी गहरा हो गया। वह मध्य प्रदेश विधानसभा की सदस्य भी थीं। 1948 में एक वाहन दुर्घटना में नियति ने असमय ही एक प्रतिभाशाली कवयित्री को हिन्दी साहित्य जगत से छीन लिया अर्थात उनकी मृत्यु हो गयी।
मुक्ति संग्राम की आवाज
सुभद्रा कुमारी चौहान और लक्ष्मण सिंह 1920-21 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी में शामिल हुए। वे दोनों नागपुर कांग्रेस की बैठक में शामिल हुए और घर-घर तक कांग्रेस का संदेश पहुंचाया। सादगी और त्याग का प्रतीक सुभद्रा जी सफेद खादी वस्त्र पहनती थीं। जब बापू ने देखा कि वह सादे कपड़े पहने हुई है तो उन्होंने सुभद्रा जी से पूछा, ‘बेन! क्या तुम्हारे पति है? “हाँ,” सुभद्रा जी ने बड़े उत्साह से घोषणा करते हुए कहा कि उनके पति भी आये हैं। बापू ने सुभद्रा को डांटते हुए कहा, ‘तुमने चूड़ियाँ क्यों नहीं पहनी है और तुम्हारे माथे पर सिन्दूर क्यों नहीं है? सुभद्रा जी के सौम्य स्नेह और भोलेपन से सभी लोग प्रभावित हुए।
निरंतर पवित्र प्रेम बाँटने के बाद भी उनका जीवन कभी खाली नहीं रहा, प्रेम से परिपूर्ण रहा। देश का पहला सत्याग्रह 1922 में जबलपुर में “झंडा सत्याग्रह” था और पहली महिला सत्याग्रही सुभद्रा जी थीं। सभाओं में सुभद्रा जी अंग्रेजों का मजाक उड़ाती थीं। सुभद्रा जी चंचलता और गंभीरता का बहुत स्वाभाविक ढंग से मिश्रण करने में सक्षम थीं। वह अपने परिवार, अपने बच्चों और घरेलू कामकाज पर उसी सहजता से ध्यान केंद्रित करने में सक्षम थीं, जिसके कारण वह देश की पहली महिला सत्याग्रही बनीं और जेल गईं।
लक्ष्मण सिंह चौहान को अपना जीवन साथी और माखनलाल चतुर्वेदी को अपना गुरु बनाते हुए, वह कई बार जेल की सजा भुगतने के बावजूद स्वतंत्रता के राष्ट्रीय उद्देश्य में अपनी सक्रिय भागीदारी में बनी रहीं। काफी समय तक कांग्रेस मध्य प्रांत विधानसभा के सदस्य के रूप में कार्य करते हुए उन्होंने राजनीतिक और साहित्यिक जीवन में समान रूप से भाग लिया। उन्होंने राष्ट्र के जागरूक नागरिक के रूप में भी अपना कार्य अंत तक निभाया। गांधीजी की असहयोग अपील को पूरा देश सुन रहा था।
सुभद्रा कुमारी चौहान का साहित्यिक परिचय
श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता में भावात्मक एवं कलात्मक दोनों पक्षों का सुन्दर समन्वय है। उनकी काव्य रचना का प्रारम्भ वैवाहिक प्रेम से हुआ। उनकी कविताओं में प्रेम की स्पष्ट एवं पवित्र अनुभूति देखी जा सकती है। उनके संबंध में डॉ. सुधीन्द्र का यह कथन प्रस्तुत करना पर्याप्त होगा।
“प्रेम, देशभक्ति और स्नेह की यह त्रिवेणी कवयित्री की अक्षय काव्य संपदा है। गांधी युग में उन्होंने महान क्रांति की साधक देश की महिलाओं की कोमलता, करुणा, पुरुषत्व और आधुनिक भावनाओं का सफलतापूर्वक प्रतिनिधित्व किया है।” … प्रेम दीवानी मीरा से महादेवी तक हिंदी। कवयित्रियों में स्वर्गीय सुभद्राकुमारी चौहान अमिट और अद्वितीय हैं।”
सुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाएँ
अपने जीवन के दौरान, सुभद्रा कुमारी चौहान ने 46 कहानियों और 88 कविताएँ लिखीं। वीर रस कविताएँ सुभद्रा जी की विशेषता थीं। बारीकी से जांच करने पर पता चला कि 1930 में प्रकाशित उनकी काव्य पुस्तक “मुकुल” के छठे संस्करण में उनके जीवनकाल से कुछ भी असामान्य नहीं है। ‘मुकुल’, उनकी कविताओं की पहली पुस्तक, 1930 में जारी की गई थी। सहायक साहित्य के रूप में, “त्रिधारा” शीर्षक से कविताएँ जारी की गई हैं। उनकी सबसे प्रसिद्ध कृति “झाँसी की रानी” है। उनकी जेल यात्रा और राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय भागीदारी के बाद, उनकी तीन कहानियों का एक संग्रह भी जारी किया गया था। सुभद्राकुमारी चौहान की प्रमुख काव्य-कृतियाँ निम्नवत् हैं-
- मुकुल – इस संग्रह में वीर रस से पूर्ण ‘वीरों का कैसा हो वसन्त’ आदि कविताएँ संग्रहीत हैं। इस काव्य-संग्रह पर इन्हें ‘सेकसरिया’ पुरस्कार प्राप्त हुआ था।
- त्रिधारा – इस काव्य-संग्रह में ‘झांसी की रानी की समाधि पर’ प्रसिद्ध कविता संग्रहीत है। इनके इस संग्रह में देशप्रेम की भावना व्यक्त होती है।
- सीधे-सादे चित्र
- बिखरे मोती
- उन्मादिनी। ये तीनों इनके कहानी-संकलन हैं।
सुभद्रा कुमारी चौहान की भाषा शैली
भाषा-
सुभद्रा जी की भाषा साहित्यिक खड़ीबोली है। भाषा में संस्कृत और फ़ारसी शब्दों का भी प्रयोग हुआ है, परन्तु उनके प्रयोग से भाषा की सुन्दरता को कोई हानि नहीं पहुँची है। इस प्रकार इनकी भाषा सरल, बोधगम्य एवं व्यावहारिक है तथा उपयुक्त मुहावरों के प्रयोग से इसकी सजीवता बढ़ गयी है।
शैली-
सुभद्रा जी की शैली लयबद्ध है, इसमें कोई कृत्रिमता या अस्वाभाविकता दृष्टिगोचर नहीं होती। उनकी शैली को कोई विशिष्ट नाम नहीं दिया जा सकता; परंतु सरल एवं समझने योग्य होने के कारण इसे एक सशक्त व्यावहारिक शैली कहा जा सकता है। इसमें प्रवाह, माधुर्य, ऊर्जा, प्रसाद आदि गुण विद्यमान हैं। उन्होंने अपनी कविता में सरलतम छंदों का प्रयोग किया है और उनके माध्यम से अपनी सरल भावनाओं को व्यक्त किया है। यही कारण है कि उनकी शैली बोधगम्य, सरल एवं सुन्दर हो गयी है। तुकबंदी के प्रयोग में उन्होंने सहनशीलता बरती है।
सुभद्रा कुमारी चौहान साहित्य में स्थान
श्रीमती सुभद्राकुमारी चौहान ने अपने काव्य में जिस वीर नारी का चित्रण किया है वह अपने आप में सराहनीय है और नारी जगत के लिए आदर्श है। आप अपनी ओजस्वी वाणी और एक समर्थ कवयित्री के रूप में हिन्दी साहित्य में अपना विशिष्ट स्थान रखती हैं।
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1. सुभद्रा कुमारी चौहान का निधन कैसे हुआ था?
इसके अलावा, यह स्वतंत्रता संग्राम में उनके नेतृत्व को प्रदर्शित करने के लिए कविता का उपयोग करती है। 15 फरवरी, 1948 को एक वाहन दुर्घटना में वह बुरी तरह घायल होकर इनका निधन हो गया।
2. सुभद्रा कुमारी चौहान की प्रसिद्ध रचना कौन सी है?
सुभद्रा द्वारा लिखी गई कई प्रसिद्ध हिंदी कविताओं में से एक है झाँसी की रानी, एक भावनात्मक कविता जो रानी लक्ष्मी बाई के जीवन का वर्णन करती है। उनकी देशभक्ति और उत्थानशील कविता, विदा, राखी की चुनौती, और वीरों का कैसा हो बसंत को खूब सराहा गया।
3. क्या सुभद्रा कुमारी चौहान स्वतंत्रता सेनानी थी?
1921 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में शामिल हुई। नागपुर में गिरफ्तार होने वाली पहली महिला सत्याग्रही सुभद्रा थीं। ब्रिटिश विरोधी प्रदर्शनों में भाग लेने के कारण कुमारी को दो बार (1923 और 1942) जेल में डाल दिया गया।
4. सुभद्रा कुमारी चौहान की काव्य संवेदना क्या है?
सुभद्रा कुमारी चौहान ने अपनी कविता के माध्यम से अपनी देशभक्ति को साहसपूर्वक प्रदर्शित किया है। उन्होंने अपनी कविता के माध्यम से देश के नवयुवकों में देशभक्ति की भावना जगाने का प्रयास किया है। उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया।
5. सुभद्रा कुमारी चौहान को 1930 में हिंदी साहित्य सम्मेलन का कौन सा पुरस्कार मिला था?
हिंदी साहित्य सम्मेलन ने 1930 में सुभद्रा कुमारी चौहान को सेक्सरिया पुरस्कार से सम्मानित किया। 16 अगस्त, 1904 को सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले के निहालपुर गाँव में हुआ था।
6. कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने भारत को बूढ़ा क्यों कहा है?
भारतीयों में अपनी मातृभूमि की रक्षा करने की वीरता का अभाव था। इसी कारण से कवयित्री ने भारत को “बूढ़ा” कहा है। कवयित्री ने रानी लक्ष्मीबाई के आगमन को “नए यौवन” का आगमन कहा है, लेकिन उन्होंने भारतीयों को अटूट शक्ति भी दी और उन्हें अंग्रेजों का विरोध करने में सक्षम बनाया।