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मीराबाई का जीवन परिचय ncert-Mirabai ka parichay

मीराबाई का जीवन परिचय ncert-Mirabai ka parichay

हेल्लो इस लेख में आप जानेंगे एक ऐसे कवयित्री के बारे में जिन्होंने अपनी सारि जिन्दगी श्री कृष्ण की भक्ति में बिता दिया। वह कवयित्री है मीराबाई तो इस लेख को पूरा पढ़कर जाने इनकी जीवनी के बारे में और साथ ही साहित्यिक परिचय, रचनाओं और भी बहुत कुछ के बारे में। संछिप्त में परिचय मीराबाई की जीवनी के अनुसार वह एक अद्भुत संत और श्री कृष्ण की अनुयायी थीं। वह जोधपुर, राजस्थान, मेदवा राजवंश की राजकुमारी थीं।

अपने परिवार से आलोचना और घृणा प्राप्त करने के बावजूद, उन्होंने एक संत जैसा जीवन जीया और कई भक्ति धुनें लिखीं। उनका नाम आज भी श्री कृष्ण भक्तों के बीच बहुत सम्मान से लिया जाता है। इसे पूरा पढ़कर जाने मीराबाई का जीवन परिचय ncert के बारे में।

मीराबाई का जीवन परिचय ncert

एक दृष्टि में परिचय

नाममीराबाई
जन्मसन् 1498 ई.
जन्म-स्थानचौकड़ी (मेवाड़), राजस्थान।
पितारतनसिंह राठौड़
मातावीर कुमारी
पतिराणा भोजराज सिंह
गुरु संत रविदास
भाषाब्रजभाषा
मृत्युसन् 1546 ई.

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Mirabai ka jivan parichay

जोधपुर के संस्थापक राव जोधाजी की परपोती, जोधपुर नरेश राजा रत्न सिंह की बेटी और भगवान कृष्ण के प्रेम में दीवानी मीराबाई का जन्म 1498 ई. में राजस्थान के चौकड़ी नामक गाँव में हुआ था। बचपन में ही उनकी माता की मृत्यु हो जाने के कारण वे अपने दादा राव दूदा जी के पास रहीं और उन्हीं के पास रहकर उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की। राव दूदा जी अत्यंत धार्मिक एवं उदार स्वभाव के थे, जिनका मीरा के जीवन पर पूर्ण प्रभाव पड़ा। आठ साल की मीरा ने कब श्रीकृष्ण को अपना पति मान लिया, यह किसी को पता नहीं चल सका।

उनका विवाह चित्तौड़ के महाराजा राणा सांगा के सबसे बड़े पुत्र भोजराज से हुआ था। शादी के कुछ साल बाद मीरा विधवा हो गईं। अब उनका सारा समय श्री कृष्ण की भक्ति में व्यतीत होने लगा। मीरा श्रीकृष्ण को अपना प्रिय मानकर उनके विरह में खड़ी होकर कीर्तन करती थीं और साधु-संतों के साथ नृत्य करती थीं। इस तरह के व्यवहार से परिवार के लोग नाराज हो गए और उन्होंने मीरा की हत्या की कई असफल कोशिशें कीं।

आख़िरकार राणा के दुर्व्यवहार से दुखी होकर मीरा वृन्दावन चली गईं। मीरा की प्रसिद्धि से प्रभावित होकर राणा को अपनी गलती पर पश्चाताप हुआ और उन्हें वापस बुलाने के लिए कई संदेश भेजे; लेकिन मीरा ने सांसारिक बंधनों को हमेशा के लिए छोड़ दिया था। ऐसा कहा जाता है कि मीरा एक पंक्ति की पंक्ति ‘हरि तुम हरो जन की पीर’ गाते हुए भगवान कृष्ण की मूर्ति में विलीन हो गई थीं। मीरा की मृत्यु 1546 ई. के लगभग द्वारका में हुई।

धार्मिक स्वभाव

मीराबाई एक कुशल, सुरीली और मृदुभाषी गायिका थीं। उन्हें इतिहास की सबसे असाधारण सुंदरियों में से एक माना जाता था, और उनकी प्रसिद्धि की चर्चा तेजी से कई राज्यों और प्रांतों में फैल गई। मीराबाई, एक राजकुमारी, अपने राजसी विशेषाधिकारों को त्यागने के बावजूद कृष्ण की जोगनिया बनने के लिए सहमत हो गईं।

मीराबाई की तीर्थ यात्रा

मीरा अपने ससुराल में अनेक अत्याचारों का शिकार हुई। इसके अतिरिक्त, उन्होंने मीरा को जहर देकर मारने का प्रयास किया। लेकिन श्रीकृष्ण की कृपा से उन पर किसी भी चीज़ का प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा। दिन-ब-दिन मीरा की भक्ति बढ़ती गई और महल छोड़ने के बाद उन्होंने द्वारका, मथुरा और वृन्दावन की यात्रा की। वह वहां जाकर साधु-संतों के बीच जोगन बनकर रहने लगी और कृष्ण की भक्ति करने लगी। जब वह मंदिरों में जाती थीं तो श्री कृष्ण की मूर्तियों के सामने घंटों नाचती और गाती रहती थीं। उनके ससुराल वालों को कृष्ण के प्रति उनके समर्पण के प्रति बहुत कम सहनशीलता थी।

मीराबाई ने भगवान कृष्ण से जुड़े पवित्र स्थानों की कई तीर्थयात्राओं का आयोजन किया क्योंकि वह उनके करीब रहना चाहती थीं। ऐसा माना जाता है कि यहीं पर कृष्ण की दिव्य लीलाएं घटित हुई थीं। मीराबाई की तीर्थयात्राएँ उनके प्रबल समर्पण से प्रतिष्ठित थीं, और उन्होंने इन यात्राओं का लाभ उठाते हुए ऐसे गीत लिखे जो उनके प्रेम और भक्ति को दर्शाते थे।

मीराबाई काव्यगत विशेषताएं

कला पक्ष

भाषा

मीरा ने अपने पद ब्रज भाषा में लिखे हैं, लेकिन उन पर राजस्थानी प्रभाव है। मीरा मेवाड़ की थीं इसलिए उनकी ब्रज भाषा में मेवाड़ी और मारवाड़ी भाषा के शब्द मिलते हैं। पूर्वी हिन्दी, पंजाबी तथा गुजराती भाषाओं का प्रभाव भी यत्र-तत्र दृष्टिगोचर होता है। मीरा की भाषा सरल, प्रवाहपूर्ण एवं रोचक है। वह मीरा के हृदय के भावों को सफलतापूर्वक व्यक्त करने में पूर्णतः सक्षम है।

शैली और छन्द

मीरा ने अपनी कविता गेय छंदों में लिखी है। इन छंदों की रचना संगीत स्वर के नियमों के अनुसार की गई है। मीरा ने गीति शैली को इसलिए अपनाया क्योंकि यह कृष्ण भक्ति की सरलता के अनुकूल है। हिंदी काव्य में मीरा का महत्वपूर्ण स्थान है।

अलंकार

मीरा की कविता इतनी मार्मिक है कि उन्हें आभूषणों से सजाने की कोई आवश्यकता महसूस नहीं हुई। हालाँकि उपमा, रूपक, अनुप्रास, अनुप्रास आदि अलंकार उनकी कविता में स्वाभाविक रूप से आते हैं और उसे बढ़ाते हैं।

भाव-पक्ष

भक्ति एवं प्रेम

मीरा के काव्य का विषय श्री कृष्ण के प्रति भक्ति और प्रेम है। मीरा श्रीकृष्ण को अपना पति मानती हैं इसलिए मीरा के काव्य में वैवाहिक प्रेम का प्रभावशाली चित्रण मिलता है। मीरा की भक्ति दास्य प्रकृति की है। मीरा ने अपने पदों में ‘दासी मीरा लाल गिरधर’ लिखकर अपनी दासता के प्रति समर्पण को स्पष्ट किया है।

विरह वेदना की तीव्रता

मीरा श्री कृष्ण से प्रेम करती है। इनके काव्य में श्रीकृष्ण मिलन का सुन्दर वर्णन मिलता है। साथ ही उनके अलग होने का दर्द भी बहुत गहरा है. विरह वेदना और पीड़ा का जो मार्मिक चित्रण मीरा ने किया है वह अन्यत्र नहीं मिलता। मीरा की विरह वेदना इतनी तीव्र एवं गंभीर है कि वह पाठक के हृदय को छू जाती है।

रहस्यवादी भावना

मीरा के पदों में यत्र-तत्र रहस्यवाद का भाव भी मिलता है। मीरा का रहस्यवाद भावात्मक है।

मीराबाई की प्रमुख रचनाएँ

मीरा की रचनाएँ श्री कृष्ण की भक्ति से संबंधित हैं। उनके पद ‘मीरा-पदावली’ में संग्रहीत हैं। ‘नरसी जी का मायरा’ में गुजरात के भक्त नरसी मेहता की प्रशंसा की गई है।

उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित मानी जाती हैं-

(१) नरसी जी का मायरा, (२) गीतगोविन्द की टीका, (३) राग गोविन्द, (४) मीराबाई की मल्हार, (५) राग विहार, (६) गरबा गीत, (७) राग सोरटा के पद इत्यादि ।

हिन्दी काव्य में स्थान

मीरा विरह वेदना की सर्वश्रेष्ठ कवयित्री हैं। जिस तरह से उन्होंने अपनी सरल भाषा में अपने दिल के प्यार को व्यक्त किया वह अनोखा है। उनकी एकाग्रता, बेचैनी, चाहत और समर्पण का स्तर अन्यत्र कहीं नहीं मिलता। मीरा अपनी अद्वितीय अभिव्यक्ति के लिए हिन्दी के भक्त कवियों में सदैव याद की जाएंगी।

FaQ’s

1. मीराबाई किसका अवतार थी?

माना जाता है कि पिछले जन्म में मीरा वृन्दावन की गोपी थीं, जहाँ वह राधा की सखी थीं। भगवान श्री कृष्ण के प्रति उनकी गहरी भक्ति थी। उन्होंने भगवान कृष्ण से मिलने के लिए अपनी जान जोखिम में डाल दी क्योंकि गोपा से विवाह करने के बाद भी उनके प्रति उनका प्रेम कम नहीं हुआ था। बाद में उसी गोपी से मीरा का जन्म हुआ।

2. क्या मीराबाई भगवान कृष्ण की भक्त है?

हिंदू रहस्यमय कवयित्री मीरा, जिन्हें मीराबाई के नाम से भी जाना जाता है और संत मीराबाई के रूप में मानी जाती हैं, 16वीं शताब्दी में कृष्ण की अनुयायी थीं। वह विशेष रूप से उत्तर भारत की हिंदू परंपरा में एक प्रसिद्ध भक्ति संत हैं।

3. राधा और मीरा में क्या अंतर है?

यहां मुद्दा यह है कि मीरा एक ऐतिहासिक राजकुमारी और कवि-संत हैं जो 400 साल पहले राजस्थान में रहती थीं, जबकि राधा एक पौराणिक चरित्र हैं जिनका परिचय जयदेव के गीत गोविंदा में हुआ था, जो 800 साल पहले लिखा गया था।

4. मीरा के काव्य की सबसे बड़ी विशेषता क्या है?

उनकी सभी कविताओं में कृष्ण के रूप, सौंदर्य, उनके प्रति भक्ति और भावनात्मक मिलन और अलगाव की विशिष्टताएँ सभी चित्रित हैं। मीराबाई की कविता का प्राथमिक केंद्र उनके भजन हैं, जो उन्होंने कृष्ण को अपना आराध्य मानकर लिखे थे।

5. मीराबाई किसकी पूजा करते थे?

अपने पति के निधन के बाद वह हर दिन और अधिक समर्पित होती गईं। वह मंदिरों में जाती थीं और उपस्थित भक्तों के सामने कृष्णजी देवता के सामने नृत्य करती थीं। कृष्ण की आराधना में मीराबाई के नृत्य और गायन से शाही परिवार नाराज हो गया। उसने मीराबाई को जहर देकर मारने की कई कोशिशें कीं और उनकी जान ले ली।

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