Makhanlal Chaturvedi jivan parichay-माखनलाल चतुर्वेदी की जीवनी

Makhanlal Chaturvedi jivan parichay-माखनलाल चतुर्वेदी की जीवनी

हेल्लो दोस्तों, इस आर्टिकल की मदद से आप माखनलाल चतुर्वेदी की जीवनी के साथ-साथ उनकी कई रचनाओं के बारे में जानेंगे, इसलिए इस आर्टिकल को शुरू से अंत तक पढ़ें। इस आर्टिकल में लिखी गई जीवनी को ध्यान से पढ़कर आप इसे अपनी परीक्षा में लिख सकते हैं जिससे आपको अच्छे अंक मिल सकते हैं।

माखनलाल जी का संछिप्त परिचय

नाममाखनलाल चतुर्वेदी
पिता का नामपं० नन्दलाल चतुर्वेदी
जन्मसन् 1889 ई०
जन्म-स्थान बावई, मध्य प्रदेश
शिक्षा प्राथमिक शिक्षा के बाद घर पर ही अंग्रेजी, संस्कृत, बाँग्ला, गुजराती भाषा का अध्ययन
सम्पादन प्रभा, कर्मवीर (पत्र)
भाषासरल एवं प्रवाहपूर्ण
शैलीमुक्तक
प्रमुख रचनाएँरामनवमी, समर्पण, युगचरण, माता, साहित्य-देवता, हिमतरंगिनी आदि।
निधनसन् 1968 ई०
साहित्य में स्थान राष्ट्रीय कवियों में श्रेष्ठ स्थान।

Makhanlal Chaturvedi jivan parichay

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माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म 1889 ई. में मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के अंतर्गत बावई नामक गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम पंडित नंदलाल चतुवेर्दी था। वे एक कुशल शिक्षक थे, परिणामस्वरूप माखनलाल जी की शिक्षा उनके पिता की देखरेख में हुई। उन्होंने अपने छात्र जीवन के दौरान ही तुकबंदी शुरू कर दी थी।

उनकी शिक्षा अधिक समय तक नहीं चली; उन्होंने घर पर ही संस्कृत, बांग्ला, गुजराती और अंग्रेजी का अध्ययन किया। सामान्य उत्तीर्ण कर चतुर्वेदी जी अध्यापक बन गये; लेकिन जल्द ही उन्होंने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और पत्रकारिता के क्षेत्र में आ गये। ‘कर्मवीर’ नामक पत्र का कुशल संपादन किया। श्री गणेश शंकर विद्यार्थी की प्रेरणा से उन्होंने कानपुर के ‘प्रभा’ नामक समाचार पत्र का भी सफलतापूर्वक संपादन किया।

एक देशभक्त होने के नाते, चतुर्वेदी जी ने राष्ट्रीय आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लिया और कई बार जेल यात्रा भी की। 1943 में वे हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष चुने गये। उनकी विद्वता और साहित्यिक साधना से प्रभावित होकर सागर विश्वविद्यालय ने उन्हें डी.लिट की उपाधि से सम्मानित किया और भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्म भूषण’ की उपाधि से सम्मानित किया। सन् 1968 में चतुर्वेदी जी इस नश्वर शरीर को त्यागकर स्वर्ग सिधार गये।

माखनलाल चतुर्वेदी के कार्य

माखनलाल जी का करियर भी बेहद सफल रहा। 16 साल की उम्र में, उन्होंने प्रभा और कर्मवीर सहित भारत में राष्ट्रीय पत्रिकाओं के संपादक बनने से पहले एक शिक्षक के रूप में अपना करियर शुरू किया। उनकी लेखन शैली अत्यंत रचनात्मक थी। माखनलाल द्वारा लिखी गई कविताओं और निबंधों का आम दर्शकों पर काफी प्रभाव पड़ा। महान थी उनकी देशभक्ति. राष्ट्र को कैसे उन्नत बनाया जाये, इस पर वे सदैव विचार करते रहते थे। कविता के अलावा माखनलाल ने एक बार भाषण भी दिया था। उनकी वक्तृताएँ बहुत उल्लेखनीय थीं। उन्होंने 1943 में अखिल भारतीय साहित्य सम्मेलन का नेतृत्व भी संभाला।

माखनलाल जी का विवाह

बहुत से लोग माखनलाल चतुर्वेदी की पत्नी के बारे में अनजान होने का दावा करते हैं। हालाँकि, बहुत से लोग दावा करते हैं कि माखनलाल चतुर्वेदी एक समय शादीशुदा थे और उस संघ से उनकी एक बेटी थी। ऐसा कहा जाता है कि जब माखनलाल चौदह वर्ष के थे, तब उनका विवाह ग्यारसी बाई से हुआ। माखनलाल के पिता का मानना था कि अगर वह माखनलाल से शादी करेंगे तो उनका ध्यान देश की सेवा करने से हटकर घर की जिम्मेदारियां संभालने में लग जाएगा क्योंकि माखनलाल देश की सेवा के लिए चौबीसों घंटे काम करते रहते थे।

हालाँकि, ऐसा नहीं हुआ. शादी के बाद उन्होंने काम करना शुरू कर दिया. और फिर धीरे-धीरे राष्ट्र के प्रति उनका स्नेह बढ़ता गया। हालाँकि, ऐसा नहीं है कि उन्होंने शादी के बाद अपनी पत्नी की उपेक्षा की। उन्होंने एक ही समय में अपने पेशे और अपनी शादी को प्राथमिकता दी। उनकी एक खूबसूरत बेटी भी है। हालाँकि, अंततः उनकी बेटी और पत्नी का निधन हो गया। माखनलाल की पत्नी और बेटी की अप्रत्याशित मृत्यु ने उन्हें झकझोर दिया।

माखनलाल जी के पुरस्कार

माखनलाल चतुर्वेदी को उनके उत्कृष्ट प्रयासों के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। 1955 में सबसे पहले उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। हिन्दी साहित्य में उनका अत्यंत विशिष्ट स्थान था। उनके प्रयासों को मान्यता देते हुए, सागर विश्वविद्यालय ने उन्हें 1959 में डी.लिट की डिग्री प्रदान की। उन्हें 1963 में पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया।

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माखनलाल चतुर्वेदी का साहित्यिक परिचय

चतुर्वेदी जी एक प्रतिभाशाली कवि थे, उन्होंने सोलह वर्ष की उम्र में अपना पहला छंद रचा। वस्तुतः चतुर्वेदी जी कवि, साहित्यकार, विचारक एवं राष्ट्रीय नेता थे। उन्होंने हिंदी साहित्य की सेवा के लिए अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने 30 वर्षों तक ‘कर्मवीर’ नामक पत्र का संपादन किया। चतुर्वेदी जी गांधीवादी विचारधारा से विशेष रूप से प्रभावित थे। उनकी शायरी देशभक्ति की भावना से कूट-कूटकर भरी है। कविता के साथ-साथ उन्होंने नाटक, निबंध और लघु कथाएँ भी लिखीं।

माखनलाल चतुर्वेदी की प्रमुख रचनाएं

श्री माखनलाल चतुर्वेदी एक भक्त, रहस्यवादी और राष्ट्रवादी कवि हैं। उनके कार्यों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है-

काव्य-कृतियाँ-

(क) हिमतरंगिणी-यह चतुर्वेदी जी की उत्तम रचना है जो साहित्य अकादमी पुरस्कार
से पुरस्कृत है।

(ख) रामनवमी – यह देशप्रेम तथा आध्यात्मिक प्रेम की कविताओं का संग्रह है।
उपर्युक्त के अतिरिक्त ‘युगचरण’, ‘समर्पण’, ‘हिम किरीटिनी’, तथा ‘वेणु लो गूँजे धरा’ आदि इनकी श्रेष्ठ काव्य रचनाएँ हैं ।

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काव्यगत विशेषताएँ-

विषय-वस्तु की दृष्टि से चतुर्वेदी जी का काव्य तीन प्रकार का है-(क) राष्ट्रीय, (ख) प्रेम विषयक, (ग) आध्यात्मिक

1. राष्ट्रीय- गांधीवाद के प्रभाव के कारण उनमें राष्ट्रीय चेतना जगी, देशोन्नति की इच्छा जगी। जो ‘एक फूल की चाह कविता में प्रकट हुई-

“चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ ।”
मुझे तोड़ लेना बनमाली, उस पथ पर देना तुम फेंक ।
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने, जिस पथ जावें वीर अनेक ॥
कवि श्री चतुर्वेदी राष्ट्र का सर्वांगीण विकास चाहते थे।

1. प्रेम विषयक- कुछ रचनाएँ प्रेम विषयक हैं जो उनके हृदय की सुकोमलता, मधुरता एवं व्यापकता से अभिभूत हैं।

3. आध्यात्मिक – इस प्रकार की रचनाओं में वे साकार से निराकार की ओर उन्मुख हुए हैं। कहीं-कहीं वे प्रेम में डूब जाते हैं, वहाँ भावाधिक्य से दुरुहता एवं अस्पष्टता-सी आ गयी है।

रस- चतुर्वेदी जी की रचनाओं में वीर एवं श्रृंगार के दर्शन होते हैं।

अलंकार – उनके काव्य में स्थान-स्थान पर स्वाभाविक रूप से उपमा, उत्प्रेक्षा, विशेषण विपर्यय तथा मानवीकरण आदि अलंकार प्रयुक्त हुए हैं।

छन्द – कविवर माखनलाल चतुर्वेदी की कविताएँ गेय छन्दों में लिखी गयी हैं।

माखनलाल चतुर्वेदी की भाषा शैली

भाषा

चतुवेर्दी जी की भाषा सरल एवं प्रवाहपूर्ण है। इसमें उर्दू संबंधी शब्दों का भी प्रयोग किया गया है। उन्होंने वीर रस के अनुकूल शब्दावली का प्रयोग किया है। छोटी-छोटी पंक्तियों में अत्यंत भावुक भावनाओं को व्यक्त किया गया है। तत्सम संस्कृत शब्दों का प्रयोग भी दृष्टिगोचर होता है। उनकी भाषा में अपार मिठास है।

शैली

चतुर्वेदी जी की शैली मौलिक है, उस पर किसी अन्य कवि की छाप नहीं है। उनकी कविता सच्चे हृदय की पुकार है; अत: इसे प्रस्तुत करने में उन्होंने किसी भी प्रकार की कृत्रिमता का सहारा नहीं लिया है। उन्होंने मुक्तक शैली अपनाई है; क्योंकि उनकी सभी कविताएँ मुक्तिदायी हैं। उनकी शैली में कोई कृत्रिमता या अस्वाभाविकता नहीं है, स्वाभाविकता और सजीवता सर्वत्र दृष्टिगोचर होती है।

लक्षणा और व्यंजना शब्द-शक्ति के स्थान पर उन्होंने अभिधा शक्ति का प्रयोग किया है, इसीलिए उनकी भाषा और शैली में सरलता का गुण विद्यमान है। इन्हें किसी भी बात को घुमा-फिरा कर कहना पसंद नहीं है, लेकिन स्वभाव से इनके मन में जो आता है वो कह देते हैं। यही उनका स्टाइल बन गया. इसमें मधुरता, स्पष्टता, माधुर्य और ओजस्विता जैसे गुण मौजूद होते हैं। छंद के प्रयोग में उन्होंने छायावादी कवियों की भाँति स्वतंत्रता का प्रयोग किया है। वह अपने कार्यों में मीटर की बंदिशों को स्वीकार नहीं करता।

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माखनलाल चतुर्वेदी का साहित्य में स्थान

चतुर्वेदी जी हिंदी साहित्य जगत की अमर विभूति थे, उनकी कविताएं आज भी देशभक्ति का पवित्र संदेश दे रही हैं। हालाँकि चतुर्वेदी जी ने कम लिखा है, लेकिन जो भी लिखा है, अच्छा लिखा है। निस्संदेह राष्ट्रीय कवियों में चतुर्वेदी जी का स्थान सर्वोत्तम है।

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1. माखनलाल चतुर्वेदी कैसे कवि थे?

हालाँकि माखनलाल चतुर्वेदी जी एक लेखक, संपादक और साहित्यकार थे, लेकिन उनकी प्रसिद्धि मुख्य रूप से एक कवि के रूप में उनके काम से उपजी थी। साहित्यिक ईश्वर उनका गद्य काव्य का शाश्वत श्रम है। भारतीय आन्दोलन को स्वर देने वाले कवियों में उनका प्रमुख स्थान है। उनकी भाषा और कविता सुस्पष्ट और स्पष्ट थी।

2. माखनलाल चतुर्वेदी को क्या कहा जाता है?

हिन्दी के विशिष्ट कवि माखनलाल चतुर्वेदी ने सशक्त भावनाओं को अभिव्यक्त करने के लिए सीधी भाषा का प्रयोग किया। ‘एन इंडियन सोल’ उन्हें दिया गया एक और उपनाम था। माखनलाल चतुर्वेदी की कविता का सार और रहस्य के प्रति उनका आकर्षण राष्ट्रवाद था।

3. माखनलाल चतुर्वेदी को राष्ट्रीय कवि क्यों कहा जाता है?

माखनलाल चतुवेर्दी निःसंदेह मूलतः राष्ट्रीय चेतना के कवि हैं। उनकी कविता राष्ट्रवाद की एक मजबूत भावना को दर्शाती है जो कालातीत और समय के लिए प्रासंगिक दोनों है। उनका काव्य प्रवचन राष्ट्रीय अस्मिता और देशभक्ति की भावनाओं से परिपूर्ण है।

4. माखनलाल चतुर्वेदी की कविताओं का मुख्य स्वर क्या है?

अपने राष्ट्र के प्रति प्रेम या राष्ट्रीय चेतना: माखनलाल चतुर्वेदी की कविता में राष्ट्रीय चेतना का बहुत ही शानदार स्वर समाहित है। उन्हें “भारतीय आत्मा” कवि कहा जाता था क्योंकि उनकी कविता वास्तव में भारतीय आत्मा का सार व्यक्त करती है। “भारतीय आत्मा” ने अपना पूरा जीवन देश की सेवा में समर्पित कर दिया।

5. क्या माखनलाल चतुर्वेदी एक स्वतंत्रता सेनानी है?

मध्य प्रदेश के होशंगाबाद क्षेत्र के पत्रकार, कवि और स्वतंत्रता सेनानी माखनलाल चतुर्वेदी ने राष्ट्रवादी पत्रिका कर्मवीर का शुभारंभ किया।

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