Harishankar parsai jivan parichay | हरिशंकर परसाई जीवन परिचय

Harishankar parsai jivan parichay | हरिशंकर परसाई जीवन परिचय

इस आर्टिकल में आप हरिशंकर परसाई की जीवनी के बारे में जानेंगे। इसमें आप जानेंगे कि उनका जन्म कब हुआ, उनकी मृत्यु कब हुई, उनकी रचनाओं और साहित्यिक परिचय के बारे में। इस आर्टिकल को पूरा पढ़कर और अच्छे से याद करके आप अपनी परीक्षा की तैयारी कर सकते हैं। इसमें हर टॉपिक को कवर किया गया है। Harishankar parsai jivan parichay ध्यान से पढ़ें।

Harishankar parsai jivan parichay

Harishankar parsai का संछिप्त परिचय

नामहरिशंकर परसाई
जन्मसन् 1924 ई०
जन्म-स्थानग्राम- जमानी (इटारसी, म०प्र०)
शिक्षा एम०ए० (हिन्दी)
सम्पादनवसुधा (पत्रिका)
लेखन-विधाव्यंग्य
भाषासरल, प्रवाहमयी, खडीबोली
शैलीव्यंग्यात्मक, आत्मपरक
प्रमुख रचनाएँ सदाचार का ताबीज, रानी नागफनी की कहानी, जैसे उनके दिन फिरे
निधनसन् 1995 ई०
साहित्य में स्थान आधुनिक युग के व्यंग्यकारों में सदैव स्मरणीय

हरिशंकर परसाई का जीवन परिचय

सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई का जन्म 22 अगस्त, 1924 को मध्य प्रदेश में इटारसी के पास स्थित ज़मानी नामक गाँव में हुआ था। जुमक लालू प्रसाद और चंपा बाई हरिशंकर परसाई के माता-पिता का नाम था। परसाई जी के चार भाई-बहन थे और जब वे छोटे थे तब उन्होंने अपने माता-पिता दोनों को खो दिया था। परिणामस्वरूप हरिशंकर परसाई पर अपने सभी भाई-बहनों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी आ गयी। उनके प्रारंभिक वर्ष में कठिनाई और कठिनाई थे। हरिशंकर परसाई अपनी बुआ के घर पर रहे, जहाँ उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा भी प्राप्त की।

परसाईजी ने ‘नागपुर विश्वविद्यालय’ से हिन्दी में एम.ए. की डिग्री प्राप्त की और कुछ समय तक अध्यापन भी किया। साहित्य में विशेष रुचि होने के कारण उन्होंने नौकरी छोड़ दी और स्वतंत्र रूप से लिखना शुरू कर दिया और साहित्य सेवा में लग गये। उन्होंने स्वयं ‘वसुधा’ नामक साहित्यिक मासिक पत्रिका का संपादन और प्रकाशन किया, लेकिन बाद में वित्तीय घाटे के कारण उन्होंने इस पत्रिका का प्रकाशन बंद कर दिया। 10 अगस्त 1995 को उनका निधन हो गया।

हरिशंकर परसाई की शिक्षा

उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गृहनगर ज़मानी में पूरी की। उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा और स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद स्नातकोत्तर (एम.ए.) की शिक्षा नागपुर विश्वविद्यालय से प्राप्त की। एम.ए. की उपाधि प्राप्त करने के बाद कुछ समय तक शिक्षक के रूप में कार्य किया।

बचपन से ही उनकी रुचि साहित्य और कला दोनों में रही है, यही वजह है कि उन्होंने शिक्षण के अलावा किताबें भी लिखी हैं। उन्होंने एक शिक्षक के रूप में अपने पद से इस्तीफा दे दिया क्योंकि उनका लगातार तबातला होता रहा इससे परेशान होकर उन्होंने अपने दम पर साहित्य को आगे बढ़ाने का फैसला किया।

कार्यक्षेत्र

इसके बाद उन्होंने हिंदी में लिखना शुरू किया और खुद को पूरी तरह से साहित्यिक सेवाओं के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने जबलपुर से “वसुधा” नामक पत्रिका का संपादन और प्रकाशन शुरू किया, हालाँकि कुछ समय बाद वित्तीय घाटे और ख़राब वित्तीय स्थिति के कारण इस पत्रिका को बंद करना पड़ा।

अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने वन विभाग में भी काम किया। उन्होंने एक स्कूल में शिक्षक की नौकरी प्राप्त की, लेकिन कुछ दिनों के बाद ही मन नहीं लगने के कारण उन्होंने नौकरी छोड़ दी।

Harishankar parsai jivan parichay

Harishankar parsai ka sahityik parichay-साहित्यिक परिचय

व्यक्ति और समाज की नैतिक और सामाजिक खामियों पर मार्मिक प्रहार करने वाले व्यंग्य निबंध लिखने में अग्रणी, शब्द और उसके अर्थ के पारखी परसाई जी की दूरदर्शिता उनकी लेखनी में बड़ी सूक्ष्मता के साथ झलकती थी। साहित्य की सेवा के लिए उन्होंने अपनी नौकरी भी छोड़ दी। स्वतंत्र लेखन को अपने जीवन का लक्ष्य बनाकर वे साहित्य साधना में लगे रहे। परसाई जी ने सामाजिक विसंगतियों और व्यक्तिगत खामियों को उजागर करने वाले व्यंग्य निबंधों के अलावा कहानियाँ और उपन्यास भी लिखे हैं।

Harishankar parsai ki rachna-कृतियाँ

परसाईजी ने अनेक विषयों पर रचनाएँ लिखीं। उनकी रचनाएँ देश की प्रमुख साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। उन्होंने कहानी, उपन्यास, निबंध आदि सभी विधाओं में लिखा। परसाई जी की कृतियों का उल्लेख नीचे दिया गया है-

  • कहानी-संग्रह – हँसते हैं, रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे।
  • उपन्यास- रानी नागफनी की कहानी, तट की खोज।
  • निबन्ध संग्रह – तब की बात और थी, भूत के पाँव पीछे, बेईमान की परत, पगडण्डियों का जमाना, सदाचार का ताबीज, शिकायत मुझे भी है, और अन्त में।

Harishankar parsai ki bhasha shaili

Harishankar parsai ki bhasha shaili : भाषा-शैली

भाषा

परसाई जी ने सामान्यतः सरल, प्रवाहपूर्ण एवं बोलचाल की भाषा अपनाई है। वे सरल एवं व्यावहारिक भाषा के पक्षधर थे। व्यावहारिक भाषा के कारण एक सामान्य पाठक भी उनकी साहित्यिक प्रस्तुतियों को आसानी से समझ सकता है। उनकी भाषा गंभीर एवं क्लिष्ट न होकर शुद्ध, सरल एवं व्यावहारिक है। उनकी रचनाओं के वाक्य छोटे एवं व्यंग्यपूर्ण हैं। उनके व्यंग्यों का विषय सामाजिक एवं राजनीतिक है। भाषा में व्यावहारिकता लाने के लिए उन्होंने उर्दू और अंग्रेजी के शब्दों का भी प्रयोग किया है; जैसे-मिशनरी, टॉनिक, गद्दार, कैटलॉग आदि। कुछ स्थानों पर मुहावरों और कहावतों का भी प्रयोग किया गया है।

शैली

परसाई जी की प्रमुख शैली व्यंग्य है। व्यंग्य का नाम आते ही पाठक को परसाई जी का नाम स्वयं याद आ जाता है। वे एक सफल व्यंग्यकार थे। उन्होंने समय की कमज़ोरियों पर तीखे व्यंग्य किये हैं। परसाईजी ने अपनी रचनाओं में निम्नलिखित शैलियों का प्रयोग किया है-

  1. व्यंग्यात्मकता (व्यंग्यात्मक शैली) – परसाईजी ने अपने निबंधों में इस शैली का सर्वाधिक प्रयोग किया है। यही शैली परसाईजी के निबंधों की आत्मा है। इस शैली पर आधारित उनके निबंध पाठक और श्रोता दोनों के लिए रोचक और आनंददायक बन गये हैं।
  2. प्रश्नात्मकता (प्रश्नात्मक शैली) – उनके निबंधों में प्रश्नात्मक शैली भी दृष्टिगोचर होती है। परसाई जी स्वयं ही प्रश्न पूछते हैं और स्वयं ही उसका उत्तर भी देते हैं।
  3. सूत्रात्मकता (सूत्रात्मक शैली) – परसाई जी ने अपनी रचनाओं में सूत्र वाक्यों के प्रयोग से समुद्र में पानी भर दिया है। आपके निबंधों में प्रयुक्त सूत्र विचारों एवं विचारों को सुव्यवस्थित ढंग से प्रस्तुत करने में उपयोगी रहे हैं।

उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि परसाईजी ने व्यंग्य निबंधों की रचना बड़ी कुशलता से की है। दरअसल, हरिशंकर परसाई जी ने हिंदी साहित्य में व्यंग्य लेखन की कमी को दूर किया।

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हिन्दी – साहित्य में स्थान

हरिशंकर परसाई हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध व्यंग्यकार लेखक थे। परसाई जी मौलिक एवं सार्थक व्यंग्य रचना में माहिर रहे हैं। हास्य और व्यंग्यपूर्ण निबंधों की रचना करके उन्होंने हिंदी साहित्य में एक विशिष्ट कमी को पूरा किया। उनके व्यंग्यों में समाज और व्यक्ति की कमजोरियों पर तीखा प्रहार होता है। आधुनिक युग के व्यंग्यकारों में उनका नाम सदैव याद रखा जायेगा।

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हरिशंकर परसाई जी की पहली रचना कौन है?

हरिशंकर परसाई का पहला लेख जबलपुर स्थित साप्ताहिक समाचार पत्र “प्रहरी” में छपा था। वह उस समय वहां एक हाई स्कूल में शिक्षक थे। हरिशंकर परसाई के अनुसार, समाजवादी आंदोलन के कारण ही उनकी पहली बार लेखन में रुचि पैदा हुई। 1947 में, उन्होंने शिक्षक का पेशा छोड़कर स्वतंत्र लेखन करने का निर्णय लिया।

हरिशंकर परसाई ने किस भाषा में लिखा था?

हिंदी में, हरिशंकर परसाई एक भारतीय लेखक थे जो 22 अगस्त 1922 से 10 अगस्त 1995 तक जीवित रहे। वह समकालीन हिंदी साहित्य में एक प्रसिद्ध व्यंग्य और हास्य लेखक थे, और उनका मौलिक और सरल लेखन प्रसिद्ध है।

हरिशंकर परसाई का साहित्य अकादमी पुरस्कार कब मिला?

व्यंग्य के माध्यम से हिंदी साहित्य के विकास में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए उन्हें 1982 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। मध्य प्रदेश के होशंगाबाद के ज़मानी में हरिशंकर परसाई का जन्म 22 अगस्त, 1924 को हुआ था।

रानी नागफनी की कहानी के लेखक कौन हैं?

रानी नागफनी की कहानी के लेखक हिंदी साहित्य के सबसे प्रसिद्ध हास्य कवि श्री हरिशंकर परसाई हैं। राजकुमार अष्टभान और राजकुमारी नागफनी इस टुकड़े के केंद्र बिंदु हैं, और यह उनके प्यार के बारे में है।

निष्कर्ष

तो ये थी हरिशंकर परसाई की उन सभी गतिविधियों के बारे में. आशा है आपको यह लेख पसंद आया होगा. आप इसे ध्यान से पढ़ें और 12वीं कक्षा की परीक्षा दें, इसमें उन सभी विषयों को शामिल किया गया है जो आपकी परीक्षा में आ सकते हैं। अधिक लेखकों या कवियों के बारे में जानने के लिए आप इस वेबसाइट पर जा सकते हैं।

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