Biharilal jivan parichay || बिहारीलाल का जीवन परिचय कक्षा 10

Biharilal jivan parichay || बिहारीलाल का जीवन परिचय कक्षा 10

हेल्लो दोस्तों इस लेख में आप जानेंगे Biharilal jivan parichay के में। हिंदी साहित्य के रीति युग में कवि बिहारी लाल को प्रसिद्धि मिली। श्रृंगार रस काव्य में उनका मुख्य योगदान यही था। उन्होंने सुंदर, प्रेमपूर्ण, अलंकृत और भक्तिपूर्ण कविता लिखी है। वह एक मुगल कवि थे और ब्रज उनकी काव्य जिह्वा थी। जयपुर में सवाई राजा जय सिंह के दरबारी कवि के रूप में, कवि बिहारी लाल ने काबुल भाषा में कई रचनाएँ लिखीं। कहा जाता है कि अपनी रानी के प्रति समर्पण के कारण, राजा जय सिंह ने राज्य की चिंताओं को नजरअंदाज कर दिया और महल छोड़ने से इनकार कर दिया।

Biharilal jivan parichay संछिप्त में

नामबिहारीलाल
पिता का नामपं० केशवराय चौबे
जन्मसन् 1603 ई०
जन्म-स्थानबसुआ (गोविन्दपुर गाँव) निकट ग्वालियर (म०प्र०)।
शिक्षा ग्वालियर में (काव्यशास्त्र की शिक्षा)
भाषाप्रौढ़, परिमार्जित ब्रज- भाषा।
शैलीमुक्तक।
प्रमुख रचनाएँ‘बिहारी सतसई’ (शृंगार, भक्ति, नीतिपरक दोहे)
निधन सन् 1663 ई०
साहित्य में स्थानएकमात्र रचना ‘सतसई’ के कारण हिन्दी-साहित्य में उच्च स्थान प्राप्त है।

Biharilal jivan parichay

बिहारीलाल का जीवन परिचयBiharilal jivan parichay

कविवर बिहारीलाल का जन्म 1603 ई. के आसपास में ग्वालियर के पास बसुआ गोविंदपुर गाँव में एक चतुर्वेंदी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम केशवराय था। बिहारी जी बचपन से ही बुद्धिमान थे। कहा जाता है कि बिहारी जी के गुरु बाबा नरहरि सिंह ने अपने प्रतिभाशाली शिष्य को तत्कालीन सम्राट जहांगीर से मिलवाया था। इस प्रकार बिहारी जी को जहाँगीर के दरबार में आश्रय मिल गया। यह भी कहा जाता है कि शाहजहाँ भी बिहारी को बहुत सम्मान देता था।

युवावस्था में ही बिहारी जी अपनी ससुराल मथुरा आ गये और वहीं रहने लगे। बाद में बिहारी जी जयपुर के महाराजा जयसिंह के यहाँ पहुँचे। वहाँ कवि ने देखा कि महाराजा नवविवाहित रानी से अत्यधिक प्रेम करते हैं। महाराजा की विलासिता प्रियता के कारण राज्य का सारा काम चौपट हो गया। यह बात बिहारी को बहुत बुरी लगा। उन्होंने निम्नलिखित दोहा लिखकर रनवास में मालिन द्वारा प्रेमोन्मत्त महाराज जयसिंह के पास भेजा-

“नहिं पराग, नहिं मधुर मधु, नहिं बिकासु इहिं काल।
अलि कलि ही सौं बिंध्यौं, आगे कौन हवाल ॥”

इस दोहे ने राजा के प्रेम के नशे और विलासिता के पागलपन में जादू कर दिया। महाराज जयसिंह बिहारीलाल की अद्भुत प्रतिभा को देखकर बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने बिहारीलाल को सुंदर दोहे लिखने का आदेश दिया और प्रत्येक दोहे के लिए एक सोने का सिक्का देने का वादा किया। जब बिहारी ने अपनी कृति ‘सतसई’ की रचना पूरी की तो कुछ ही दिन बाद उनकी पत्नी की मृत्यु हो गई। इस दुखद घटना ने इस धार्मिक कवि को त्याग की ओर आकर्षित किया। अपने जीवन के अंतिम समय में बिहारी वृन्दावन चले गये और इस अमर कवि ने 1663 ई. में अपना नश्वर शरीर त्याग दिया।

Biharilal ka Sahityik parichay

बिहारीलाल अद्भुत रचनात्मक प्रतिभा से सम्पन्न कवि थे। उन्होंने किसी महाकाव्य की रचना नहीं की लेकिन उनकी एकमात्र रचना ‘सतसई’ ने उन्हें अमर बना दिया। आपको ऐसा कोई कवि नहीं मिलेगा जिसकी कविता बेस्वाद न हुई हो, लेकिन बिहारी के सभी दोहे स्वाद से भरपूर हैं। बिहारी ने अपने दोहों को ‘गागर में सागर’ से भर दिया है। बिहारी ने किसी लक्षण ग्रंथ की रचना नहीं की, फिर भी काव्य रचना करते समय उनका ध्यान काव्यशास्त्र पर ही रहा। श्रृंगार, ज्योतिष, गणित, आयुर्वेद, भक्ति, सदाचार और ऋतुओं का वर्णन भी उनके काव्य के विषय थे, परंतु प्रधानता प्रेम और श्रृंगार की है। रीतिकाल के सर्वश्रेष्ठ कवियों में बिहारी की गिनती होती है।

इसे भी पढ़ेसुभद्रा कुमारी चौहान

Biharilal jivan parichay

बिहारीलाल की रचनाएं

बिहारीलाल की बहुत सारी रचनाएँ नहीं हैं। उन्होंने लगभग 750 दोहों की रचना की। ये दोहे ‘बिहारी सतसई’ में संकलित हैं। इस सारगर्भित रचना से बिहारी हिन्दी साहित्य जगत में लोकप्रिय हो गये। हिन्दी साहित्य में ‘बिहारी सतसई‘ को पूर्व सम्मान एवं लोकप्रियता प्राप्त है।

काव्यगत विशेषताएँ-

कविवर बिहारी के काव्य सौन्दर्य को संक्षेप में इस प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता है-

श्रृंगार-वर्णन : बिहारी के दोहे भक्ति, नीति और शृंगार की त्रिमूर्ति माने जाते हैं। कवि की प्रवृत्ति श्रृंगार वर्णन में बहुत अधिक है। वे शृंगार रस की नायिका राधा की प्रस्तुति इस प्रकार करते हैं-

“मेरी भव बाधा हरौ, राधा नागरि सोय।
जा तन की झाँई परै, श्याम हरित दुति होय॥”

भक्त बिहारी कृष्ण की स्तुति करते हैं-

“शीश मुकुट कटि काछनी कर मुरली उर माल।
यहि बानक मो मन बसहु, सदा बिहारी लाल ॥”

बिहारी के काव्य में भक्ति, नीति एवं श्रृंगार का समन्वय मिलता है। नीति देखें-

“मीत न नीत गलीत है, जो धरिए धन जोरि ।
खाये खरचै जो बचै, तौ जोरिए करोरि ॥”

शृंगार के संयोग एवं वियोग दोनों पक्षों का सुन्दर चित्रण किया है। संयोग पक्ष देखें-

“बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय।
सौंह करै भौहनु हँसे, दैन कहै नटि जाय ॥”

अलंकार – यमक, श्लेष, उपमा, उत्प्रेक्षा, अनुप्रास, अतिशयोक्ति, प्रतीप, निदर्शना, दृष्टान्त आदि समस्त अलंकारों का सुप्रयोग बिहारी सतसई में हुआ है। एक दोहे में चार-चार अलंकार मिल जाते हैं। प्रकृति वर्णन, ज्योतिष, दर्शन, गणित तथा राजनीति आदि का वर्णन कविवर बिहारी के दोहों में मिल जाता है।

बहुज्ञता : इस तथ्य के बावजूद कि काव्य कौशल को प्राकृतिक, जन्मजात और ईश्वर द्वारा प्रदत्त माना जाता है, एक कवि में बहुविद्या होनी चाहिए। कवि बिहारी उन कई त्योहारों, रीति-रिवाजों और परंपराओं से अच्छी तरह वाकिफ थे जो उस समय उस समुदाय में आम थे। उन्होंने पतंगबाजी, कबूतरबाजी, चौगान, आंख मिचौनी और होली सहित कई खेलों का उत्कृष्ट वर्णन किया है। वस्तु-वर्णन दृष्टिकोण की दृष्टि से उनका काव्य समग्र है। उनकी कविता में गुल्लाला, कमल, सोनजुही और मोगरा सहित कई फूलों का वर्णन है। इस प्रकार उनकी कविता जीवन के कई क्षेत्रों के रीति-रिवाजों और शब्दजाल को पकड़ती है जो आधुनिक संस्कृति में आम हैं।

Biharilal jivan parichay

बिहारीलाल की भाषा-शैली

भाषा

बिहारीलाल की भाषा वनस्पति एवं परिष्कृत है। इन काव्य रचनाओं में पूर्वी-बुन्देलखण्डी, खड़ीबोली, फ़ारसी और अरबी भाषाओं के शब्द भी शामिल हैं। इन शब्दों के प्रयोग से कहीं भी प्रकृति नष्ट नहीं होती। बिहारी की तत्सम भाषा में रीतिकाल के अन्य बर्तनों का विरूपण बहुत कम मिलता है। असफल भाषा में यौगिक शक्ति ही सफलता का मुख्य कारण है। मुहावरे और लाक्षणिक प्रयोग भाषा में सजीवता लाते हैं।

शैली

बिहारी ने अपने काव्य में मुक्तक शैली का प्रयोग किया। उन्होंने अपनी कविता के लिए अड़तालीस छंदों का एक छोटा छंद ‘दोहा’ अपनाया। मुक्तक शैली में जो गुण होने चाहिए वे बिहारी के दोहों में अपनी चरम सीमा पर पहुँच गए हैं। बिहारी ने अपने विषय के अनुरूप शैली अपनायी। उनकी शैली उनकी सभी भावनाओं को सजीव एवं स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करने में पूर्णतः सफल है। इसीलिए उनकी ‘सतसई’ का प्रत्येक दोहा एक रत्न के समान है, जिसे कवि ने जौहरी की तरह चुनकर अपने काव्य में रखा है।

बिहारी की शैली का अनुसरण कई बाद के कवियों ने किया; लेकिन उनके जैसी सफलता कोई हासिल नहीं कर सका। उनके जैसी आत्मसात करने की शक्ति किसी अन्य हिंदी कवि में देखने को नहीं मिलती। सारांश यह है कि शैली की दृष्टि से बिहारीलाल का काव्य पूर्णतः सफल है। उनकी कविता में शैली के निम्नलिखित रूप देखे जा सकते हैं-

  1. व्यंजना-प्रधान अलंकृत शैली, 2. कल्पना-प्रधान उहात्मक शैली, 3. वक्रकथन-प्रधान शैली।

इसे भी पढ़े – सूरदास की जीवनी

Biharilal jivan parichay

बिहारीलाल का हिन्दी-साहित्य में स्थान

बिहारी ने भाषा के प्रयोग में जो असाधारण सावधानी बरती, उसके कारण उनकी भाषा में मधुरता और लालित्य आ गया। उन्होंने केवल ‘सतसई‘ की रचना की। रचना करने वालों में बिहारी सर्वश्रेष्ठ हैं। जब तक हिंदी रहेगी, बिहारी की कीर्ति अमर रहेगी।

FaQ’s

1. बिहारीलाल की ससुराल कहाँ?

बिहारीजी के पिता, केशव राय, अपने प्रारंभिक वर्षों के दौरान, बुन्देलखंड क्षेत्र के ओरछा में रहते थे। बिहारीजी जन्म 1603 के आसपास ग्वालियर में हुआ था। शादी के बाद वह और उनके ससुराल वाले मथुरा चले गए।

2. बिहारी कैसे कवि है?

ब्रज भाषा के कवि बिहारी ने कविता लिखी। अपने जीवन के अंतिम दिनों में वे मथुरा में बस गये। सात सौ छंदों में सतसई ग्रंथ शामिल है, जिसे उन्होंने लिखा था। कई लोग इस पुस्तक को रीतिकालीन उत्कृष्ट कृति मानते हैं।

3. बिहारी के काव्य की मुख्य विशेषता क्या है?

उनकी कविता भाषण के अलंकारों की विस्तृत श्रृंखला के लिए प्रसिद्ध है, जिनमें से कई में स्पष्ट विसंगतियाँ, उपमाएँ, रूपक और अतिशयोक्ति शामिल हैं। इससे यह पता चलता है कि वे अभिव्यंजक और भावनात्मक पक्ष की हर पारंपरिक विशेषता का उदाहरण देते हैं। इसलिए उन्हें रीतिकाल का सबसे बड़ा कवि भी माना जाता है।

4. बिहारी को रीतिसिद्ध कवि क्यों कहा जाता है?

वे रीतिकाल के प्रतिनिधि कवियों में से एक हैं। वह अपनी कविता में प्रेम को प्रतिबिंबित करते हुए दरबारी की मांगों का सामना करते हैं। दरबारी संस्कृति के कारण उनका प्रेम पतनशील हो गया है। यदि प्रेम को समर्पित कवियों ने आध्यात्मिक रूप दिया है तो बिहारी जी ने उसी प्रेम का प्रणयन किया है।

5. बिहारी कौन सी धारा के कवि हैं?

वे बिहारी रीतिकाल के प्रतिनिधि कवियों में से एक हैं। बिहारी में भावना और अभिव्यक्ति समान रूप से महत्वपूर्ण हैं, हालांकि रीतिकाल के अन्य कवियों ने चीजों के शिल्प पक्ष पर अधिक ध्यान केंद्रित किया है।

6. बिहारी ने काव्य की शिक्षा कहाँ से पायी?

आचार्य केशवदास ने ही बिहारी को कविता की शिक्षा दी थी। भारतीय कवि एवं संस्कृति गुरु आचार्य केशवदास सुविख्यात थे। उन्होंने पढ़ी गई संस्कृत साहित्य की कई महत्वपूर्ण काव्य कृतियों को अपनी शिक्षा का अभिन्न अंग माना।

Leave a comment

Join our Mailing list!

Get all latest news, exclusive deals and academy updates.