आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय क्लास 10th

आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय क्लास 10th

इस लेख में आचार्य रामचंद्र शुक्ल की विस्तृत जीवनी शामिल है। उन विद्यार्थियों के लिए जो अब कक्षा 10 में नामांकित हैं, यह जीवनी काफी उपयोगी है। चूँकि जीवनी लिखना बोर्ड परीक्षा के हिंदी प्रश्न पत्र में शामिल एक विषय है, इसलिए आचार्य रामचंद्र शुक्ल की जीवनी के बारे में पूछना संभव है। ऐसे में अगर आप उनका इतिहास ठीक से पढ़ेंगे तो आपको परीक्षा में काफी मदद मिलेगी और आप हिंदी विषय में उच्च अंक भी हासिल कर पाएंगे।

बोर्ड परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्रों की मदद करने के अलावा, रामचंद्र शुक्ल की जीवनी प्रतियोगी परीक्षाओं और सरकारी नौकरी की तैयारी करने वाले छात्रों के लिए अत्यधिक मूल्यवान है। यदि आप एक छात्र हैं जो वर्तमान में किसी प्रतियोगी परीक्षा के लिए अध्ययन कर रहे हैं, तो शुक्ल जी का जीवन परिचय प्रश्नों में सामने आता है। इसलिए, यह जीवनी परीक्षा में आपके लिए उपयोगी हो, इसके लिए आपको इसे पूरा अवश्य पढ़ना चाहिए।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय क्लास 10th

आचार्य रामचंद्र शुक्ल का संछिप्त परिचय

नामआचार्य रामचंद्र शुक्ल
पिता का नामपंडित चन्द्रबली शुक्ल
जन्मसन् 1884 ई.
जन्म स्थानबस्ती जिले का अगोना ग्राम
शिक्षाहाईस्कूल ( मिर्ज़ापुर )
सम्पादननागरी प्रचारिणी पत्रिका, आनन्द कादम्बिनी और हिंदी शब्द सागर
लेखन विद्याआलोचना, निबंध, नाटक, पत्रिका,काव्य, इतिहास आदि
भाषा-शैलीशुद्ध साहित्यिक, सरल एवं व्यावहारिक भाषा
निधनसन् 1941 ई.
साहित्य में स्थाननिबंधकार, अनुवादक, आलोचक, सम्पादक के रूप में।
प्रमुख रचनाएँ चिन्तामणि, विचारविधि ( निबंध संग्रह ), रसमीमांसा और त्रिवेणी आदि रचनाएँ

Aacharya Ramchandra Shukla ka jivan parichay

हिन्दी के प्रतिभावान साहित्यिक आलोचक एवं युगप्रवर्तक आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का जन्म 1884 में बस्ती जिले के अगोना नामक गाँव के एक सम्भ्रान्त परिवार में हुआ था। उनके पिता चंद्रबली शुक्ला मिर्ज़ापुर में वकील थे। उनकी माँ अत्यन्त विदुषी और धार्मिक थीं। उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा जिले की राठ तहसील में अपने पिता से प्राप्त की और 10वीं की परीक्षा मिशन स्कूल से उत्तीर्ण की। गणित में कमजोर होने के कारण वह आगे की पढ़ाई नहीं कर सके।

उन्होंने एफ०ए० (इंटरमीडिएट) की शिक्षा इलाहाबाद से ली, लेकिन परीक्षा से पहले ही स्कूल छोड़ दिया।इसके बाद वह मिर्ज़ापुर की अदालत में काम करने लगे। यह नौकरी उनके स्वभाव के अनुकूल नहीं थी, अतः वे मिर्ज़ापुर के मिशन स्कूल में चित्रकला के अध्यापक बन गये। अध्यापन के दौरान उन्होंने अनेक कहानियाँ, कविताएँ, निबंध, नाटक आदि की रचना की। उनकी विद्वता से प्रभावित होकर श्यामसुंदर दास जी ने उन्हें ‘हिन्दी शब्द-सागर’ के संपादन कार्य में सहयोग के लिए काशी नागरी प्रचारिणी सभा में ससम्मान आमंत्रित किया।

उन्होंने 19 वर्षों तक ‘काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिका’ का संपादन भी किया। कुछ समय बाद वे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के प्रोफेसर नियुक्त हो गये और श्यामसुन्दर दास जी के सेवानिवृत्त होने के बाद वे हिन्दी विभाग के अध्यक्ष भी बने। स्वाभिमानी एवं गंभीर स्वभाव के इस अनुभवी हिन्दी साहित्यकार का 1941 में निधन हो गया।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय क्लास 10th

आचार्य रामचंद्र शुक्ल का साहित्यिक पसरीचय

शुक्ल जी एक कुशल संपादक भी थे। उन्होंने सूर, तुलसी, जायसी जैसे महान कवियों की प्रकाशित रचनाओं का संपादन किया। उन्होंने ‘नागरी प्रचारिणी पत्रिका’ और ‘आनंद कादम्बिनी’ जैसी पत्रिकाओं का संपादन किया। उन्होंने ‘हिन्दी शब्द सागर’ का संपादन भी किया। शुक्ल जी ने निबंधकार के रूप में हिन्दी साहित्य की विशेष सेवा की। उन्होंने विशेषकर भावनात्मक एवं आलोचनात्मक निबंध लिखे। उनके आलोचनात्मक निबंध साहित्यिक निबंधों में गिने जाते हैं।

एक आलोचक के रूप में शुक्ल जी ने हिन्दी साहित्य की अविस्मरणीय सेवा की। उन्होंने ‘हिन्दी साहित्य का इतिहास’ नामक कृति लिखकर हिन्दी के लिए महान योगदान दिया। शुक्ल जी में काव्य प्रतिभा भी थी। उन्होंने कहानी विधा पर भी लिखा। शुक्ल जी ने जहां मौलिक ग्रंथों की रचना की, वहीं अन्य भाषाओं के ग्रंथों का हिंदी में अनुवाद भी किया। इस प्रकार आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने हिन्दी साहित्य की शाश्वत सेवा की।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल की रचनाएँ

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने साहित्य की विभिन्न विधाओं में अपनी रचनात्मक शक्ति का परिचय दिया। उनकी निम्नलिखित रचनाएँ उल्लेखनीय हैं-

  • निबन्ध संग्रह – ‘विचार वीथी’ और ‘चिंतामणि’ (दो भाग) शुक्ल जी के उच्च कोटि के मनोवैज्ञानिक, वैचारिक और साहित्यिक निबंधों के संकलन हैं।
  • आलोचना ग्रन्थ – सूरदास, रस मीमांसा, त्रिवेणी ।
  • इतिहास – हिन्दी साहित्य का इतिहास’ इनका प्रामाणिक ऐतिहासिक ग्रन्थ है।
  • सम्पादित रचनाएँ – ‘जायसी-ग्रन्थावली’, ‘तुलसी ग्रन्थावली’, ‘हिन्दी शब्द सागर’ और ‘नागरी प्रचारिणी पत्रिका’।
  • अनूदित रचनाएँ – आदर्श जीवन, कल्पना का आनन्द, शशांक तथा बुध चरित आदि अनेक ग्रन्थों का इन्होंने उत्तम अनुवाद किया है।

हिंदी की विभिन्न विधाओं में रचना करने के अलावा एक योग्य शिक्षक के रूप में भी उनका योगदान उल्लेखनीय है। छात्रों में साहित्य के मर्म को समझने की जो क्षमता आई, उससे हिंदी में कई अच्छे शिक्षकों, आलोचकों और शोधकर्ताओं का जन्म हुआ।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय क्लास 10th

आचार्य रामचंद्र शुक्ल की भाषा शैली

भाषा

शुक्ल जी ने अधिकतर गंभीर विषयों पर लिखा, जिससे उनकी भाषा भी गंभीर एवं क्लिष्ट हो गयी है। कहीं-कहीं तो भाषा इतनी जटिल हो गई है कि उसे पढ़ना और समझना केवल उच्च स्तरीय विद्वानों के लिए ही रह गया है। यही कारण है कि कई आलोचक उनकी भाषा पर कठिनाई का आरोप लगाते हैं। लेकिन सच तो यह है कि इतने गंभीर विषयों पर चर्चा के लिए इससे सरल भाषा कोई हो ही नहीं सकती थी।

हां, जहां विषय सरल है, वहीं उनकी भाषा भी सरल और मार्मिक है। उनकी भाषा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह विषय के अनुसार आसान या कठिन हो जाती है। इससे भी बड़ी खासियत यह है कि जहां विषय बेहद गंभीर हो और भाषा कठिन हो, वहां भी वे अपने पाठकों को बोर नहीं होने देते. तीखे व्यंग्य और हास्य और हास्य का. वह अपनी बुद्धि से पाठक को बांधे रखता है। देखिए बिहारी की नायिका की चर्चा में उनका बयान-

“बिहारी की नायिका जब साँस लेती है तब उसके साथ-साथ चार कदम आगे बढ़ जाती है। घड़ी के पेंडुलम की भाँति उसकी दशा होती है।”

शुक्ल जी का शब्द चयन एवं वाक्य संरचना अद्वितीय है। उनका एक भी शब्द निरर्थक नहीं है और न ही उसे अपनी जगह से हटाया जा सकता है। उन्होंने उर्दू, अंग्रेजी आदि के शब्दों का प्रयोग बेबाकी से किया है। विराम चिह्नों का भी उचित प्रयोग किया गया है।

शैली

भाषा की तरह शुक्ल जी की शैली भी अत्यंत सशक्त एवं परिपक्व है। उनकी शैली में ‘गागर में सागर’ भरने की अद्भुत शक्ति है।

  1. आलोचनात्मक या समीक्षात्मक शैली – शुक्ल जी ने इस शैली का प्रयोग अपने आलोचनात्मक निबंधों में किया है। इस शैली में उन्होंने गंभीर विषयों को प्रस्तुत किया हैै।
  2. विचारात्मक और विवेचनात्मक शैली – शुक्ल जी ने इस शैली में विचार-प्रधान निबन्धों की रचना की है।
  3. भावात्मक शैली – शुक्ल जी ने इसी शैली में मनोवैज्ञानिक निबंधों की रचना की है। इस शैली का प्रयोग सबसे पहले शुक्ल जी ने किया था इसलिए उन्हें इस शैली का जनक कहा जाता है।
  4. गवेषणात्मक शैली – यह शैली आलोचनात्मक शैली से अधिक कठिन है। इस शैली में लेखक ने नये-नये विषयों पर निबंधों की रचना की है।
  5. तुलनात्मक शैली – शुक्ल जी ने अपने निबंधों में तुलनात्मक शैली का प्रयोग किया है। जब शुक्ल जी किसी मानसिक विकार का वर्णन करते हैं तो उसे अधिक स्पष्ट करने के लिए उसकी तुलना अन्य मानसिक विकारों से करते हैं।
  6. व्यंग्यात्मक शैली – शुक्ल जी ने अपने गंभीर निबंधों में हास्य का पुट देने के लिए यत्र-तत्र व्यंग्य शैली का प्रयोग किया है।
  7. समास या सूत्रात्मक शैली – यह शैली शुक्ल जी की अपनी है। इस शैली में सबसे पहले वह अपनी विषय-वस्तु को सूत्रबद्ध रूप में प्रस्तुत करते हैं और फिर उसकी व्याख्या करते हैं। इस शैली को दूसरे शब्दों में समास शैली भी कहा जा सकता है; जैसे- “बैर क्रोध का अचार या मुरब्बा है।”

आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी का साहित्य में स्थान

आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी का साहित्य में स्थान

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल हिन्दी साहित्य के अमर साहित्यकार हैं। उन्होंने हिंदी साहित्य में मूक साधक और मार्गदर्शक दोनों के रूप में काम किया। हिन्दी साहित्य जगत में इन्हें आलोचना का सारांश कहा जाता है। उनके द्वारा लिखे गए मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक निबंधों का अपना विशेष महत्व है। हिन्दी साहित्य में उनका स्थान इसी बात से सिद्ध होता है कि उनके समकालीन हिन्दी गद्य युग को ‘शुक्ल युग’ कहा गया है।

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रामचंद्र शुक्ल ने कौन सी कहानी लिखी?

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “हिन्दी साहित्य का इतिहास” में कहा है कि वे “इंदुमती” को सबसे प्रारंभिक कहानी मानते हैं। हालाँकि, शुक्ल जी ने अपने करियर में किसी समय अपनी कहानी, “ग्यारह साल का समय” को पहली हिंदी कहानी के दावेदारों में से एक के रूप में सूचीबद्ध किया था।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने कबीर की भाषा को क्या नाम दिया है?

कबीर की भाषा को रामचन्द्र शुक्ल ने सधुक्कड़ी भाषा कहा है। हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कबीर को भाषा का अधिनायक कहा है। कबीर के शिष्य धरमदास ने उनकी वाणी को संकलित कर बीजक नाम से प्रकाशित किया।

कविता क्या है रामचंद्र शुक्ल सारांश?

कविता ही मानव हृदय को आत्मकेंद्रित संबंधों के छोटे दायरे से ऊपर उठाकर साझा भावनाओं के दायरे तक ले जा सकती है, जहां दुनिया भर में होने वाले असंख्य आंदोलनों की मार्मिक प्रकृति देखी जा सकती है और शुद्ध अनुभव साझा किए जा सकते हैं। एक व्यक्ति जो इस भूमि पर आया है वह शुरू में खुद से अनजान होता है। वह सरकारी सत्ता में अपनी ताकत का निवेश जारी रखता है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल के इतिहास ग्रंथ की सबसे बड़ी विशेषता क्या है?

इतिहास लिखते समय आचार्य रामचन्द्र शुक्ल एक व्यवस्थित दृष्टिकोण अपनाते हैं जो अपना मार्ग स्वयं बनाता है। विश्लेषण के अनुक्रमिक तर्क विकास का प्रत्येक चरण ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि यह पिछले से जुड़ा हुआ है और उभर रहा है। लेखक को अपने मामले में इतना दृढ़ विश्वास है कि उसे विरोध की आशंका नहीं है।

रामचंद्र शुक्ल ने कविता को क्या कहा है?

कविता शेष सृष्टि के साथ मानव जाति के भावनात्मक संबंध को संरक्षित करने और बढ़ाने के माध्यम के रूप में कार्य करती है।

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