Tulsidas ka Jivan Paichay Class 10-तुलसी दास का जीवनी

Tulsidas ka Jivan Paichay Class 10-तुलसी दास का जीवनी

इस लेख में आपका स्वागत है, इसकी मदद से आप Tulsidas के जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय और उनके कार्यों और रचनाओं के बारे में जानेंगे। तो आर्टिकल को पूरा पढ़ें और अधिक जानें। Tulsidas ka Jivan Paichay Class 10 के बारे में आप इसे किसी भी कक्षा के लिए पढ़ सकते हैं या याद कर सकते हैं। चाहे 10 हो या 11

Tulsidas ka Jivan Paichay Class 10

नामतुलसीदास
पिता का नामश्री आत्माराम दुबे
माता का नाम हुलसी देवी
जन्मसन् 1532 ई.
भाषाअवधि, ब्रज
शैली प्रबंध , मुक्तक, साखी
छंद दोहा, चौपाई , सवैया अदि।
निधन सन् 1623 ई.

Tulsidas ka Jivan Paichay Class 10-तुलसी दास का जीवनी

हिन्दी साहित्य के चमकते सितारे महाकवि तुलसी के जन्म स्थान और समय को लेकर विद्वानों में मतभेद है। आन्तरिक एवं बाह्य साक्ष्यों तथा लोककथाओं के आधार पर ज्ञात होता है कि उनका जन्म 1532 ई. (1589 ई.) में बांदा जिले के राजापुर ग्राम में हुआ था। ‘गोसाईं चरित’ के अनुसार तुलसी का जन्म (1554 ई.) 1497 ई. में हुआ था। उनके जन्म स्थान के संबंध में भी अलग-अलग मत हैं। कुछ विद्वान एटा जिले के ‘सोरों’ नामक स्थान को तुलसी की जन्मस्थली मानते हैं।

तुलसी की माता का नाम ‘हुलसी’ और पिता का नाम आत्माराम दुबे था। कहा जाता है कि तुलसीदास पैदा होते ही रोये नहीं थे, उनके मुँह से ‘राम’ निकला था, इसलिए उनके पिता ने उनका नाम रामबोला रख दिया। पैदा होते ही इस बालक के मुंह में 32 दांत थे और इसका जन्म अभुक्त मूल नक्षत्र में हुआ था।

अत: माता-पिता ने इसे अशुभ मानकर बालक को ‘मुनिया’ नामक दासी को दे दिया। बचपन में मुनिया नामक नौकरानी ने उनकी देखभाल की। जब मुनिया थोड़ी बड़ी हुई तो उसने बच्चे को महात्मा नरहरिदास को सौंप दिया। नरहरिदास जी ने उनका पालन-पोषण और शिक्षा-दीक्षा की। उन्होंने काशी जाकर ‘शेष सनातन’ नामक आचार्य से व्याकरण और वेदांत की शिक्षा प्राप्त की।

Tulsidas जी का विवाह दीनबंधु पाठक की पुत्री ‘रत्नावली’ से हुआ था। वह अपनी पत्नी से अत्यधिक प्रेम करता था। एक बार पत्नी बिना बताए अपने गांव चली गई। वह अपनी पत्नी का वियोग सहन नहीं कर सका और भारी बारिश में उफनती नदी को पार कर रात में अपनी पत्नी के पास पहुंच गया। यह बात पत्नी को बुरी लगी. उन्होंने तुलसी को फटकारते हुए कहा-

“लाज न आवत आपको, दौरे आयहु साथ।

धिक् धिक् ऐसे प्रेम को, कहा कहीं मैं नाथ ॥

अस्थि चर्ममय देह मम, जासौं ऐसी प्रीति ।

वैसी जो श्रीराम महँ, होति न तौ भव-भीति ॥”

पत्नी की इस फटकार ने तुलसीदास की आँखें खोल दीं। वे संसार से विरक्त हो गये और घर द्वार छोड़ कर रामभक्ति में लीन हो गये। वे राम का गुणगान करते हुए कुछ दिन काशी में रहे, फिर कुछ समय अयोध्या में रहे और तत्पश्चात् कुछ समय चित्रकूट में निवास किया। अनेक सन्तों से इनकी भेंट हुई। राम का गुण-कीर्तन करते हुए इस सन्त ने विशाल और उत्तम साहित्य की रचना की।

राम का गुणगान करते हुए उन्होंने 1680 ई. (1623 ई.) में काशी के अस्सी घाट पर अपना पंचभौतिक शरीर त्याग दिया।

Tulsidas ka Jivan Paichay Class 10

Tulsidas ka Sahityik Parichay-साहित्यिक परिचय

तुलसीदास जी हिन्दी साहित्य के एक महान कवि हैं, जो विनाश, पीड़ा, घुटन, निराशा और गुलामी के युग में अपनी सशक्त और आत्मविश्वासपूर्ण रचनाओं के माध्यम से भारतीय जनमानस के लिए सम्मान और सम्मान का एक सदाचारपूर्ण जीवन प्रस्तुत करते हैं। इस कार्य में भारतीय जनता में आत्म, आशा, विश्वास तथा कर्तव्य की भावना को जन्म दिया गया।

संगतिवादी तुलसी का काव्य भाव पक्ष और कला पक्ष का अद्भुत संगम है। आज उनके द्वारा रचित महाकाव्य ‘श्री रामचरितमानस’ विश्व साहित्य की अमर कृति है। तुलसीदास जी समन्वय के कवि हैं। इन कविताओं में ज्ञान, भक्ति, कर्म, व्यक्ति, समाज, भाषा और सिद्धांत का समन्वय है। सहयोग की इसी भावना के कारण ही Tulsidas जी भारत में लोकनायक कवि का दर्जा प्राप्त कर सके।

Tulsidas ki rachnaye-कृतियाँ

तुलसीदास की कृतियाँ – महाकवि तुलसीदास की 12 प्रामाणिक रचनाएँ उपलब्ध हैं, जिनका विवरण . निम्नलिखित है-

  1. रामलला नहछू : यह तुलसी की प्रारंभिक रचना है। इसकी रचना लोकगीत की ‘सोहर’ शैली में की गई है।
  2. वैराग्य-संदीपनी : इस ग्रन्थ में वैराग्य का वर्णन है।
  3. रामाज्ञा – प्रश्न : इस ग्रंथ में रामकथा का वर्णन है। संपूर्ण पुस्तकालय सात सर्गों में विभाजित है। इसमें शुभ-अशुभ शकुनों का वर्णन है।
  4. जानकी- मंगल : इस काव्य में राम और सीता के शुभ-विवाह के मांगलिक उत्सव का मनोरम वर्णन है।
  5. रामचरितमानस : यह तुलसी की सर्वोत्तम रचना है। यह हिन्दी का सर्वोत्तम एवं लोकप्रिय महाकाव्य है। यह कविता इतनी लोकप्रिय हुई कि उत्तर भारत में हर हिंदू के घर में इसकी एक प्रति पाई जाती है।
  6. पार्वती-मंगल : यह संगीत आधारित मंगल काव्य है। इसमें पार्वती और शिव के विवाह के शुभ उत्सव का वर्णन है।
  7. गीतावली : रामचरित्र का वर्णन 230 छंदों में किया गया है। पुस्तक 7 खंडों में विभाजित है।
  8. विनय पत्रिक : तुलसी की उत्कृष्ट अंतिम रचना है। इसकी रचना छंदों में की गई है। यह तुलसी द्वारा कलियुग के विरुद्ध श्री राम को लिखी गई पत्रिका है। इसमें तुलसी की भक्ति और दार्शनिक विचार व्यक्त किये गये हैं।
  9. श्री कृष्ण : गीतावली – यह श्री कृष्ण की कहानी पर आधारित कविता है। कवि ने केवल 61 सुन्दर श्लोकों में श्री कृष्ण के सम्पूर्ण चरित्र का वर्णन किया है।
  10. बरवै-रामायण :यह गोस्वामी जी की मौलिक रचना है। इसमें गोस्वामी Tulsidas ने बरवै छन्द में रामकथा का संक्षेप में वर्णन किया है।
  11. दोहावली – इसमें नीति के दोहे हैं। इसमें कवि का शायराना अंदाज नजर आता है.
  12. कवितावली – इस काव्य में राम की कथा का वर्णन मधुर ब्रज भाषा में कविता और सवैया छंद में किया गया है।

Tulsidas ka Jivan Paichay Class 10

Tulsidas की काव्यगत विशेषताएँ-

विषय वस्तु – तुलसी की रचनाएँ मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान राम के पवित्र चरित्र से परिपूर्ण हैं। भक्ति की भावना – तुलसीदास राम के परम भक्त हैं। उनकी भक्ति नौकर-चाकर प्रकृति की होती है। रामविमुख की प्रेयसी उसके लिए बलि है-

“जाके प्रिय न राम वैदेही ।

तजिए ताहि कोटि वैरी सम जद्यपि परम सनेही ॥”

राम तुलसी के आदर्श हैं। चातक प्रेम उनके लिए आदर्श प्रेम है-

“एक भरोसौ एक बल, एक आस विश्वास ।

एक राम घनश्याम हित, चातक तुलसीदास ॥”

समन्वय की भावना – समन्वय की भावना तुलसी के काव्य की प्रमुख विशेषता है। भक्ति और ज्ञान, निर्गुण और सगुण, शैव और शाक्त के बीच समन्वय स्थापित किया। वे सच्चे समन्वयवादी कवि थे।

लोक कल्याण की भावना – तुलसी का काव्य लोक कल्याण, परोपकारिता तथा लोक कल्याणकारी भावनाओं से परिपूर्ण था।
शक्ति, शील और सौंदर्य के रूप में राम का अवतरण लोक कल्याण के लिए ही हुआ है।

“परहित सरिस धर्म नहिं भाई। परपीड़ा सम नहिं अधमाई ॥”

रस-चित्रण – शृंगार, शान्त, करुण रस उनके काव्य के प्राण हैं। हास्य, वीर, रौद्र, वीभत्स तथा भयानक आदि रसों का भी सुपरिपाक हुआ है।

अलंकार – तुलसी ने सभी अलंकारों का प्रयोग भाव एवं भाषा के अनुकूल ही किया है। उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, अतिशयोक्ति, यमक तथा श्लेषादि अलंकार उनके काव्य में खूब मिल जाते हैं।

Tulsidas ki Bhasha Shaili-

भाषा – तुलसी का ब्रज और अवधी दोनों भाषाओं पर समान अधिकार है। तत्सम संस्कृत शब्दों के कारण उनकी रचनाओं में साहित्यिक गुणवत्ता उच्च कोटि की है। यत्र-तत्र अरबी, फ़ारसी, उर्दू तथा बुन्देलखण्डी भाषाओं के शब्द भी मिलते हैं।

शैली – महाकवि तुलसी की प्रतिभा सर्वांगीण थी। उन्होंने नौ रसों का वर्णन सफलतापूर्वक लिखा। वे महाकाव्य, खंड काव्य और सहज काव्य सभी प्रकार की रचना करने में निपुण थे। उन्हें अवधी और ब्रज दोनों भाषाओं पर समान अधिकार था। उनमें अपने समय में प्रचलित सभी शैलियों जैसे दोहा, चौपाई शैली, कविता सवैया शैली, दोहा शैली और गीति शैली आदि में काव्य रचना करने की अद्भुत क्षमता थी। उनकी भाषा में अभिव्यक्ति की अद्भुत शक्ति है। संस्कृत के विद्वान होते हुए भी उन्होंने जनता में प्रचलित भाषाओं का प्रयोग किया।

उनकी भक्ति, गरिमा और आशावाद आदि के लिए उन्हें लोक नायक कहा जाता था। रूपक उनकी पसंदीदा अभिव्यक्ति है। अपने काव्य गुणों के कारण उनकी गणना सूर के समान हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ कवियों में की जाती है। हरिऔध जी के शब्दों में-

Tulsidas ka Jivan Paichay Class 10

FaQ’s Tulsidas

तुलसीदास कितने पढ़े लिखे थे?

तुलसीदास जी ने 14 से 15 वर्ष की आयु तक नर सिंह बाबा जी के आश्रम में रहकर सनातन धर्म, संस्कृत, व्याकरण, हिन्दू साहित्य, वैदिक दर्शन, छह वेदांग, ज्योतिष आदि का अध्ययन किया। रामबोला के गुरु नर सिंह दास रामबोला को गोस्वामी तुलसीदास के नाम से जानते थे।

तुलसीदास जी क्या लिखे थे?

तुलसीदास ने रामायण के आधार पर रामचरितमानस को अवधी भाषा में लिखा। साहित्यिक इतिहासकारों का दावा है कि तुलसीदास ने वर्ष 1574 में अयोध्या में रामनवमी के अवसर पर रामचरितमानस की रचना शुरू की थी।

वाल्मीकि रामायण और तुलसीदास रामायण में क्या अंतर है?

वाल्मिकी रामायण के अनुसार असली सीता का अपहरण रावण ने किया था। तुलसीदास रामायण के अनुसार रावण ने असली सीता का अपहरण नहीं किया था बल्कि रावण ने जिसका अपहरण किया था वह असली सीता का प्रतिरूप था। अपहरण की घटना घटने से पहले भगवान राम ने असली सीता को अग्नि देव को सौंप दिया था।

तुलसीदास क्यों प्रसिद्ध थे?

Tulsidas को संस्कृत का विद्वान होने के साथ-साथ हिंदी के सबसे प्रसिद्ध और निपुण कवियों में से एक माना जाता है। तुलसीदास जी ने अपने जीवनकाल में 12 ग्रंथ लिखे। माना जाता है कि मूल महाकाव्य रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मिकी ने भी तुलसीदास जी का ही रूप धारण किया था।

Tulsidas कितने साल तक जीवित रहे?

कुछ विद्वान उनका जन्म 1511 में मानते हैं। तुलसीदास जी ने श्री रामचरित मानस ग्रंथ की रचना राजापुर गांव में की थी। वर्तमान में यहां श्री रामचरित मानस मंदिर स्थित है। तुलसीदास जी की मृत्यु संवत 1680 में 126 वर्ष की आयु में हुई।

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