Maithili Sharan Gupt Jeevan Parichay-मैथिली शरण गुप्त जीवन परिचय

Maithili Sharan Gupt Jeevan Parichay-मैथिली शरण गुप्त जीवन परिचय

नमस्कार दोस्तों, इस लेख की मदद से आप Maithili Sharan Gupt Jeevan Parichay पढ़ेंगे और साथ ही इस लेख में आपको उनका साहित्यिक परिचय, रचनाएँ और उनका साहित्यिक स्थान भी पढ़ने को मिलेगा, इसलिए इसे पूरा पढ़ें और अपने ज्ञान को बढ़ाएं।

Maithili Sharan Gupt Jeevan Parichay

जीवन परिचय-Maithili Sharan Gupt

Maithili Sharan Gupt का जन्म सन् 1886 में झाँसी जिले के अंतर्गत चिरगाँव नामक स्थान पर वैश्य कुल में सेठ रामचरण के घर में हुआ था। सेठ रामचरण भगवान के भक्त और हिन्दी काव्य के प्रेमी थे। वे स्वयं भी कविता लिखते थे। मैथिली शरण गुप्त को कविता लिखने की प्रेरणा अपने पिता से मिली। बचपन में गुप्ता जी ने अपने पिता की नोटबुक पर एक स्वलिखित कविता लिखी थी, जिसे पढ़कर उनके पिता ने उन्हें आशीर्वाद दिया, “तुम एक सफल और निपुण कवि हो”।

पिता का यह आशीर्वाद आगे चलकर राष्ट्रकवि के लिए सत्य सिद्ध हुआ। बचपन से ही गुप्ता जी की रुचि शिक्षा में नहीं थी। प्राथमिक शिक्षा के बाद उन्हें अंग्रेजी पढ़ने के लिए झाँसी भेजा गया लेकिन वहाँ भी उनका मन नहीं लगा और वे वापस आ गये। घर पर रहकर ही उन्होंने अपना ज्ञान बढ़ाया और कुछ दिनों के बाद वे काव्य रचना करने लगे। उनकी रचनाएँ हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होने लगीं। गुप्ता जी आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी को अपना गुरु मानते थे। उनके छोटे भाई सियारामशरण गुप्त भी अच्छे कवि एवं लेखक थे।

उनका हृदय देशभक्ति से कूट-कूट कर भरा था, इसलिए देश की आजादी के लिए गुप्ता जी को जेल जाना पड़ा। उनकी सतत काव्य-साधना और असाधारण देशभक्ति से प्रभावित होकर आगरा विश्वविद्यालय ने उन्हें डी.लिट की उपाधि से सम्मानित किया और हिन्दी-साहित्य सम्मेलन ने उन्हें ‘साहित्य वाचस्पति’ की उपाधि से विभूषित किया। उनकी अद्वितीय साहित्य-साधना और कठिन परिश्रम को देखकर स्वयं राष्ट्रपति ने उन्हें दो बार राज्य सभा के सदस्य के रूप में मनोनीत किया। गुप्ता जी सरल एवं सीधे स्वभाव के व्यक्ति थे, वे गांधीवाद से पूर्णतः प्रभावित थे। 12 दिसम्बर, 1964 को सरस्वती के इस अमर पुत्र का निधन हो गया।

Maithili sharan gupt ka sahityik parichay-साहित्यिक गतिविधियाँ

Maithili sharan gupt जी ने खड़ीबोली के स्वरूप के निर्धारण एवं विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। गुप्त जी की आरंभिक कृतियों भारत-भारती आदि में ऐतिहासिक वर्णन प्रचुर मात्रा में है, परंतु बाद की कृतियों जैसे यशोधरा और साकेत में प्रतीकात्मक विचित्रता तथा भावनाओं की सूक्ष्म, मार्मिक अभिव्यक्ति है। गुप्त जी ने व्यवस्था में गीतात्मक काव्य का समावेश कर इन दोनों रचनाओं को उत्कृष्टता प्रदान की है।

Maithili Sharan Gupt Jeevan Parichay

maithili sharan gupt ki rachnaye-रचनाएँ

गुप्तजी आधुनिक काल के सर्वाधिक लोकप्रिय कवि थे। उनकी 40 मौलिक एवं 6 अनुवादित पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ इस प्रकार हैं-

  • भारत-भारती : इस काव्य पुस्तक में देश के गौरव से जुड़ी कविताएँ हैं।
  • यशोधरा : इसमें गौतम के वन चले जाने के बाद उपेक्षित यशोधरा के चरित्र को काव्य का आधार बनाया गया है।
  • साकेत : इसमें साकेत (अयोध्या) का वर्णन है।
  • पंचवटी : इसमें सीता, राम और लक्ष्मण के आदर्श चरित्र का चित्रण है। इसके अतिरिक्त ‘जयद्रथ वध’, ‘जय भारत’, ‘द्वापर’, ‘सिद्धराज’, ‘अनघ’, ‘झंकार’, ‘चव’, ‘पृथ्वीपुत्र’, ‘रंग में भंग’, ‘गुरुकुल’, ‘किसान’, ‘हिन्दू’, ‘चन्द्रहास’, ‘मंगल घट’, ‘कुणाल गीत’ तथा ‘मेघनाथ वध’ आदि महत्त्वपूर्ण रचनाएँ हैं।

Maithili sharan gupt का काव्यगत विशेषताएँ

Maithili Sharan Gupt Jeevan Parichay

भाव पक्ष

1. देशभक्ति गुप्त जी के काव्य का मुख्य स्वर देशभक्ति है। उनकी रचनाओं में आज की समस्याएँ एवं विचार स्पष्ट रूप से परिलक्षित होते हैं। इसका एक मुख्य उद्देश्य भारतीय जनता में राष्ट्रीय चेतना जागृत करना था। उन्होंने उस समय लोगों के बीच राष्ट्रीय चेतना की आवाज उठाई जब हमारा देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था। उन्होंने देशवासियों में देश के प्रति प्रेम जागृत करते हुए यह भी कहा है-

“जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं । वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।। “

2. नारी का महत्त्व गुप्ता जी का हृदय महिलाओं के प्रति दया और सहानुभूति से भरा है। महिलाओं की स्थिति को ऊंचा उठाने के लिए उन्होंने सदियों से उपेक्षित रहीं उर्मिला और यशोधरा जैसी महिलाओं के चरित्र का उत्कृष्ट चित्रण कर एक नई परंपरा की शुरुआत की।

3. भारतीय संस्कृति के उन्नायक गुप्त जी भारतीय संस्कृति के प्रतिनिधि कवि हैं इसलिए उन्होंने भारत के गौरवशाली अतीत का सुन्दर वर्णन किया है। उनका मानना था कि सुंदर वर्तमान और सुनहरे भविष्य के लिए अतीत को जानना बहुत जरूरी है।

4. प्रकृति चित्रण प्रकृति को आकर्षक रूप देने में इनमें गजब का हुनर होता है। उनके प्रकृति चित्रण में सहज ही मन को आकर्षित करने की अद्भुत क्षमता है।

5. रस योजना गुप्ता जी की रचनाओं में अनेक रुचियों का सुन्दर समन्वय है। शृंगार, क्रोध, दया, क्रोध, हास्य और शान्त भावों के विषयों में गुप्त जी अत्यंत सफल रहे हैं। साकेत में शृंगार रस के दोनों पक्षों संयोग और वियोग का सुन्दर समन्वय देखने को मिलता है। प्रसंगानुसार उनकी कविता में ऐसे स्थान हैं, जहां पात्र अपनी गंभीरता भूलकर हास्यप्रद हो गये हैं।

कला पक्ष

1. भाषा गुप्ता (जी) का हिंदी साहित्य में खड़ीबोली को साहित्यिक स्वरूप देने में महत्वपूर्ण योगदान है। गुप्त जी की भाषा में मधुर भावों की तीव्रता और प्रयुक्त शब्दों का सौन्दर्य अद्भुत है। उन्होंने ब्रज भाषा के स्थान पर सरल, शुद्ध एवं परिष्कृत खड़ीबोली में काव्य रचना की। उन्होंने इसे काव्य भाषा के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे गम्भीर विषयों को भी सुन्दर एवं सरल शब्दों में प्रस्तुत करने में माहिर थे। लोकोक्तियों और मुहावरों के प्रयोग से उनकी भाषा जीवंत हो उठी।

2. शैली – गुप्त जी ने अपने समय में प्रचलित लगभग सभी शैलियों का प्रयोग अपनी रचनाओं में किया। वे मूलतः प्रबंधक थे, परंतु प्रबंधन के साथ-साथ उन्होंने मुक्तक, गीति, गीति नाट्य, नाटक आदि क्षेत्रों में भी अनेक सफल रचनाएँ लिखी हैं। उनकी कृति ‘पत्रावली’ अक्षर शैली में लिखी गई नवीन काव्य प्रणाली का उदाहरण है। . उनकी शैलियों में लयात्मकता, सहज प्रवाह, सरसता और संगीतात्मकता विद्यमान है।

3. अलंकार एवं छन्द अलंकार के क्षेत्र में गुप्त जी उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, यमक, श्लेष के अतिरिक्त ध्वन्यर्थ-व्यंजना, मानवीकरण जैसे आधुनिक अलंकारों का भी प्रयोग किया। अन्त्यानुप्रासों की योजना में इनका कोई जोड़ नहीं है। इन्होंने प्रायः सभी प्रचलित छन्दों- मन्दाक्रान्ता, शिखरनी, वसन्ततिलका, द्रुतविलम्बित, हरिगीतिका, बरवै मालिनी आदि में अपनी रचनाएँ प्रस्तुत कीं। इन्होंने तुकान्त, अतुकान्त एवं गीति तीनों प्रकार के छन्दों का समान अधिकार से प्रयोग किया है।

Maithili Sharan Gupt

Maithili sharan gupt का-हिन्दी साहित्य में स्थान

राष्ट्रीयता की भावना से ओतप्रोत अपनी रचनाओं के कारण मैथिली शरण गुप्त जी का हिंदी साहित्य में विशेष स्थान है। आधुनिक हिन्दी काव्य धारा के साथ विकास के पथ पर चलते हुए वे युग के प्रतिनिधि कवि के रूप में स्वीकार किये गये। हिन्दी काव्य में राष्ट्रीय भावनाओं की पवित्र गंगा प्रवाहित करने का श्रेय गुप्त जी को है। अतः सच्चे अर्थों में वही सच्चे राष्ट्रकवि हैं जो लोगों में राष्ट्रीय भावना भरकर उनमें राष्ट्रीय जागृति लाते हैं। उनकी कविताएँ हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि हैं।

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मैथिली शरण गुप्त को राष्ट्रीय कवि क्यों कहा जाता है?

गुप्त केवल इसलिए राष्ट्रकवि नहीं बन गये क्योंकि वे देश की आजादी से पहले भी राष्ट्रीयता की भावना से लिखते रहे। वे देश के कवि इसलिए बने क्योंकि वे हमारी चेतना, हमारी बातचीत, हमारे आंदोलनों की भाषा बन गये। व्यक्तिगत सत्याग्रह के कारण 1941 में उन्हें जेल जाना पड़ा। तब तक वे हिन्दी के सबसे प्रतिष्ठित कवि बन चुके थे।

गुप्ता जी का प्रिय छंद कौन सा है?

गुप्तजी ने प्राचीन और नवीन छंदों को अपनाया है। हरिगीतिका गुप्तजी का अत्यंत प्रिय छंद है। गुप्तजी के काव्य में उपमा, रूपक, अनुप्रास, प्रसंग, सन्देह, यमक, यमक, अनुप्रास आदि अलंकारों की प्रधानता है।

मैथिलीशरण गुप्त कैसे कवि थे?

कविता: क्योंकि गुप्त जी जन्मजात लोक-सामूहिक कवि थे, इसलिए वे अपने समय के मुद्दों के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील थे। पुनर्जागरण और सुधार काल की राष्ट्रीय नैतिक चेतना से प्रभावित होने के साथ-साथ उनका काव्य वैष्णव भावनाओं से भी प्रेरित था।

मैथिलीशरण गुप्त की प्रथम पुस्तक कौन सी थी?

रसिछेंद और सरस्वती उनकी पहली रचना थी, जिसे उन्होंने वर्ष 1905 में ब्रज भाषा में लिखा था। इसके बाद उन्होंने खड़ी बोली में लिखा। उनकी बाद की रचनाएँ, जैसे रंग में भंग, जयद्रत-वध और भारत-भारती ने उन्हें बहुत प्रशंसा अर्जित की।

भारत के प्रथम राष्ट्र कवि कौन है?

प्रसिद्ध हिन्दी कवि मैथिली शरण गुप्त का जीवनकाल 3 अगस्त 1886 से 12 दिसम्बर 1964 तक रहा। वह हिन्दी साहित्य के इतिहास में खड़ी बोली के पहले महत्वपूर्ण कवि हैं।

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