Mahadevi Verma Jeevan Parichay-महादेवी वर्मा जीवन परिचय इन हिंदी

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Mahadevi Verma Jeevan Parichay

एक दृष्टि में Mahadevi Verma Jeevan Parichay

नाममहादेवी वर्मा।
पिता का नामगोविन्दसहाय वर्मा।
जन्मसन् 1907 ई० ।
जन्म-स्थानफर्रुखाबाद (उत्तर प्रदेश) ।
शिक्षाएम० ए०
भाषा-शैलीभाषा–संस्कृतनिष्ठ खड़ीबोली। शैली-मुक्तक गीतिकाव्य की प्रवाहमयी सुव्यवस्थित शैली।
प्रमुख रचनाएँयामा, दीपशिखा, नीरजा, नीहार, रश्मि, सान्ध्यगीत।
निधन11 सितम्बर, 1987 ई०
साहित्य में स्थानछायावादी युग की महान् कवयित्री तथा आधुनिक युग की मीरा।
महादेवी वर्मा जीवन परिचय -Mahadevi Verma Jeevan Parichay

Mahadevi Verma Jeevan Parichay- महादेवी वर्मा का जन्म फर्रुखाबाद के एक शिक्षित कायस्थ परिवार में सन् 1907 ई० (संवत् 1963 वि०) में होलिका दहन के दिन हुआ था। इनके पिता श्री गोविन्दप्रसाद वर्मा, भागलपुर के एक कॉलेज में प्रधानाचार्य थे। इनकी माता हेमरानी परम विदुषी धार्मिक महिला थीं एवं नाना ब्रजभाषा के एक अच्छे कवि थे। महादेवी जी पर इन सभी का प्रभाव पड़ा और अन्ततः वे एक प्रसिद्ध कवयित्री, प्रकृति एवं परमात्मा की निष्ठावान् उपासिका और सफल प्रधानाचार्या के रूप में प्रतिष्ठित हुईं। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा इन्दौर में और उच्च शिक्षा प्रयाग में हुई।

संस्कृत से एम० ए० उत्तीर्ण करने के बाद ये प्रयाग महिला विद्यापीठ में प्रधानाचार्या हो गयीं। इनका विवाह 9 वर्ष की अल्पायु में ही हो गया था। इनके पति श्री रूपनारायण सिंह एक डॉक्टर थे, परन्तु इनका दाम्पत्य जीवन सफल नहीं था। विवाहोपरान्त ही इन्होंने एफ०ए०, बी०ए० और एम०ए० परीक्षाएँ सम्मानसहित उत्तीर्ण की। महादेवी जी ने घर पर ही चित्रकला तथा संगीत की शिक्षा भी प्राप्त की।
इन्होंने नारी-स्वातन्त्र्य के लिए संघर्ष किया, परन्तु अपने अधिकारों की रक्षा के लिए नारियों का शिक्षित होना भी आवश्यक बताया।

कुछ वर्षों तक ये उत्तर प्रदेश विधान परिषद् की मनोनीत सदस्या भी रहीं। भारत के राष्ट्रपति से इन्होंने ‘पद्मभूषण’ की उपाधि प्राप्त की। हिन्दी साहित्य सम्मेलन की ओर से इन्हें ‘सेकसरिया पुरस्कार‘ तथा ‘मंगलाप्रसाद पारितोषिक’ मिला। मई 1983 ई० में ‘भारत-भारती’ तथा नवम्बर 1983 ई० में यामा पर ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ से इन्हें सम्मानित किया गया। 11 सितम्बर, 1987 ई० (संवत् 2044 वि०) को इस महान् लेखिका का स्वर्गवास हो गया।

साहित्यिक परिचय-Mahadevi Verma ka Sahityik Parichay

महादेवी वर्मा ने मैट्रिक उत्तीर्ण करने के पश्चात् ही काव्य-रचना प्रारम्भ कर दी थी। करुणा एवं भावुकता उनके व्यक्तित्व के अभिन्न ‘अंग थे। अपनी अन्तर्मुखी मनोवृत्ति एवं नारी सुलभ गहरी भावुकता के कारण उनके द्वारा रचित काव्य में रहस्यवाद, वेदना एवं सूक्ष्म अनुभूतियों के कोमल तथा मर्मस्पर्शी भाव मुखरित हुए हैं। इनके काव्य में संगीतात्मकता एवं भाव- तीव्रता का सहज-स्वाभाविक समावेश हुआ है।

नकी रचनाएँ सर्वप्रथम ‘चाँद’ नामक पत्रिका में प्रकाशित हुईं, तत्पश्चात् इन्हें एक प्रतिष्ठित कवयित्री के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त हुई। इसके बाद महादेवी  जी ‘बाद’ की सम्पादिका भी रहीं। इन्होंने प्रयाग में ‘साहित्यकार संसद’ की स्थापना की, जिसका उद्देश्य साहित्यकारों को सहायता करना और उनकी  रचनाओं को प्रकाशित करना था। इनके जीवन का उद्देश्य साहित्य सेवा और जन सेवा रहा।

इन्हें काव्य रचना ‘नीरजा’ और ‘यामा’ पर क्रमशः सेकसरिया और मंगलाप्रसाद पारितोषिक प्रदान किए गए। चित्रकला और संगीत में महादेवी जी को विशेष रुचि थी। इसका प्रमाण इनकी कविताओं में भी दिखाई देता है। महादेवी जी का काव्य संगीत की मधुरता लिए हुए है। ये अपनी कविताओं में चित्रकला जैसे शब्दचित्र उपस्थित कर देती थीं।

Mahadevi Verma Jeevan Parichay

कृतियाँ Mahadevi Verma ki Rachnaye

महादेवी वर्मा जी की निम्नलिखित रचनाएँ ये है –

‘नीहार’, ‘रश्मि’, ‘नीरजा’, ‘सांध्यगीत’, ‘दीपशिखा’, ‘यामा’ इन संग्रहों के अतिरिक्त महादेवी वर्मा की ‘सप्तवर्णा’ और ‘हिमालय’ काव्य कृतियाँ हैं। इन्हीं कविता संग्रहों में कुछ गीतों के संकलन ‘संधिनी’ और ‘आधुनिक कवि’ शीर्षक से प्रकाशित हो चुके हैं। गद्य में ‘अतीत के चलचित्र’, ‘स्मृति की रेखाएँ’, ‘श्रृंखला की कड़ियाँ’, ‘मेरा परिवार’ आदि प्रसिद्ध रचनाएँ हैं।

  • इनका प्रथम प्रकाशित काव्य संग्रह निहार है, जिसमें भावमय गीत संकलित हैं।
  • रश्मि संग्रह में आत्मा-परमात्मा के मधुर सम्बन्धों पर आधारित गीत संकलित हैं।
  • नीरजा में प्रकृति प्रधान गीत संकलित हैं।
  • सान्ध्यगीत के गीतों में परमात्मा से मिलन का आनन्दमय चित्रण है।
  • दीपशिखा में रहस्यभावना प्रधान गीतों को संकलित किया गया है।
  • यामा में इनके विशिष्ट गीतों का संग्रह प्रकाशित हुआ है।
  • इसके अतिरिक्त अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएँ, श्रृंखला की कड़ियाँ आदि इनकी गद्य रचनाएँ हैं।

काव्यगत विशेषताएँ

भाव पक्ष
  1. अलौकिक प्रेम का चित्रण महादेवी वर्मा के सम्पूर्ण काव्य में अलौकिक ब्रह्म के प्रति प्रेम का चित्रण हुआ है। वही प्रेम आगे चलकर इनकी साधना बन गया। इस अलौकिक ब्रह्म के विषय में कभी तो इनके मन में मिलन की प्रबल भावना जाग्रत हुई है, तो कभी रहस्यमयी प्रबल जिज्ञासा प्रकट हुई है।
  2. रहस्यात्मकता आत्मा के परमात्मा से मिलन के लिए बेचैनी इनके काव्य में प्रकट हुई है। आत्मा से परमात्मा के मिलन के सभी सोपानों का वर्णन महादेवी वर्मा के काव्य में मिलता है। मनुष्य का प्रकृति से तादात्म्य, प्रकृति पर चेतनता का आरोप, प्रकृति में रहस्यों की अनुभूति, असीम सत्ता और उसके प्रति समर्पण तथा सार्वभौमिक करुणा आदि विशेषताएँ इनके रहस्यवाद से जुड़ी हैं। इन्होंने प्रकृति पर मानवीय भावनाओं का आरोपण करके उससे आत्मीयता स्थापित की।
  3. वेदना भाव महादेवी वर्मा के काव्य में मौजूद वेदना में साधना, संकल्प एवं लोक कल्याण की भावना निहित है। वेदना इन्हें अत्यन्त प्रिय है। इनकी इच्छा है कि इनके जीवन में सदैव अतृप्ति बनी रहे। इन्होंने कहा भी है-“मैं नीर भरी दुःख की बदली।” इन्हें ‘आधुनिक ‘मीरा’ की संज्ञा भी दी गई है।
  4. प्रकृति का मानवीकरण महादेवी के काव्य में प्रकृति आलम्बन, उद्दीपन, उपदेशक, पूर्वपीठिका आदि रूपों में प्रस्तुत हुई है। इन्होंने प्रकृति में विराट की छाया देखी है। छायावादी कवियों के समान ही इन्होंने प्रकृति का मानवीकरण किया है। सुन्दर रूपकों द्वारा प्रकृति के सुन्दर चित्र खींचने में महादेवी जी की समानता कोई नहीं कर सकता।
  5. रस महादेवी जी के काव्य में श्रृंगार के दोनों पक्षों वियोग और संयोग के साथ करुण एवं शान्त रसों का सुन्दर परिपाक हुआ है
कला पक्ष
  1. भाषा महादेवी जी की भाषा संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली है। इनकी भाषा के स्निग्ध एवं प्रांजल प्रवाह अन्यत्र देखने को नहीं मिलते हैं। कोमलकान्त पदावली ने भाषा को अपूर्व सरसता प्रदान की है।
  2. शैली इनकी शैली मुक्तक गीतिकाव्य की प्रवाहमयी सुव्यवस्थित शैली है। ये शब्दों को पंक्तियों में पिरोकर कुछ ऐसे ढंग से प्रस्तुत करती हैं कि उनकी मौक्तिक आभा एवं संगीतात्मक गूँज सहज ही पाठकों को आकर्षित कर लेती है।
  3. सूक्ष्म प्रतीक एवं उपमान महादेवी जी के काव्य में मौजूद प्रतीकों, रूपकों एवं उपमानों की गहराई तक पहुँचने के लिए आस्तिकता, आध्यात्मिकता एवं अद्वैत दर्शन की एक डुबकी अपेक्षित होगी, अन्यथा हम इनकी अभिव्यंजना के बाह्य रूप को तो देख पाएँगे, किन्तु इनकी सूक्ष्म आकर्षण शक्ति तक पहुँच पाना कठिन होगा।
  4. लाक्षणिकता लाक्षणिकता की दृष्टि से महादेवी जी का काव्य बहुत प्रभावशाली है। इन्होंने अपने गीतों के सुन्दर चित्र अंकित किए हैं। कुशल चित्रकार की भाँति इन्होंने थोड़े शब्दों से ही सुन्दर चित्र प्रस्तुत किए हैं।
  5. अलंकार एवं छन्द महादेवी जी ने अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग किया है। इनके यहाँ उपमा, रूपक, श्लेष, मानवीकरण, सांगरूपक, रूपकातिशयोक्ति, ध्वन्यर्थ-व्यंजना, विरोधाभास, विशेषण-विपर्यय आदि अलंकारों का सहज रूप में प्रयोग हुआ है। इन्होंने मात्रिक छन्दों में अपनी कुछ कविताएँ लिखी हैं, परन्तु सामान्यतया विविध गीत-छन्दों का प्रयोग किया है, जो इनकी मौलिक देन है।

Mahadevi Verma Jeevan Parichay

भाषा-शैलीMahadevi Verma ki Bhasha Shaili

भाषा – भाषा काव्य के क्षेत्र में महादेवी जी की प्रारम्भिक रचनाएँ ब्रजभाषा में है, किन्तु बाद में खड़ी- बोली पर ही आ गयी और उसी में अपना स्थान बनाया। इनकी खड़ीबोली शुद्ध, मधुर और कोमल है। इसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों की अधिकता है। भाषा को मधुर और कोमल बनाने के लिए कहीं-कहीं शब्दों को बदल दिया गया है। कहीं पर शब्द मनमाने ढंग से तोड़-मरोड़ दिए गए हैं। सूक्ष्म भावनाओं का चित्रण होने के कारण इनकी भाषा में सांकेतिकता और संवेदनात्मकता है।

शैली-महादेवी जी ने अपने काव्य की रचना मुक्तक रूप में की है। इन्होंने अपने काव्य में विविध शैलियों को अपनाया है। चित्र शैली का इनके काव्य में सुन्दर रूप देखने को मिलता है। इसमें कवयित्री ने भावों को अनेक स्थानों पर चित्रात्मक रूप में प्रस्तुत किया है। महादेवी जी स्वयं एक उच्चकोटि की चित्रकार थीं। अतः इस शैली के प्रयोग में इन्हें पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त हुई है।

इनकी दूसरी शैली प्रगीत शैली है। इस शैली का प्रयोग इनके काव्य में बड़े व्यापक रूप में देखने को मिलता है। इस शैली में संगीत की प्रधानता है, किन्तु इसमें लय और ताल का सुन्दर निर्वाह नहीं हुआ है। यह ध्वन्यात्मक शैली भी कही जा सकती है। इस शैली में भक्तिकाल से चले आनेवाले गीतों की शैली का उत्कर्ष रूप देखने को मिलता है। इन दोनों शैलियों के अतिरिक्त महादेवी जी ने सम्बोधन शैली और प्रश्न शैली का प्रयोग भी अपने काव्य में किया है।

हिन्दी साहित्य में स्थानMahadevi Verma ka Sahitya mein sthan

महादेवी वर्मा छायावादी युग की एक महान् कवयित्री समझी जाती हैं। इनके भाव पक्ष और कला पक्ष दोनों ही अद्वितीय हैं। सरस कल्पना, भावुकता एवं वेदनापूर्ण भावों को अभिव्यक्त करने की दृष्टि से इन्हें अपूर्व सफलता प्राप्त हुई हैं। कल्पना के अलौकिक हिण्डोले पर बैठकर इन्होंने जिस काव्य का सृजन किया, वह हिन्दी साहित्याकाश में ध्रुवतारे की भाँति चमकता रहेगा।

आपके लिए 10 McQ
  1. महादेवी वर्मा का जन्म कब हुआ हैं।
A. 1909B. 1907
C. 1910D. 1905

2. महादेवी वर्मा जी के पिता का क्या नाम है?

A. पंडित भोलासिंहB. सेठ रामचरण वर्मा
C. गोविन्दप्रसाद वर्माD. हीरानन्द शास्त्री

3. महादेवी जी का जन्म किस स्थान पर हुआ हैं?

A. फर्रुखाबादB. आगरा 
C. मथुराD. काशी

4. महादेवी वर्मा जी की माता कौन है –

A. दामिनी देवी B. पार्वती देवी
C. रुक्मिणी देवीD. हेमरानी देवी

5. इनमें से इनकी कौन-कौन सी रचनाएँ है –

A. नीहारB. रश्मि
C. दीपशिखाD. इनमें से सभी

6. महादेवी वर्मा के पति का क्या नाम है?

A. मंगल प्रसादB. रूपनारायण सिंह
C. अनमोल द्विवेदीD. हीरानन्द

7. इनकी प्रारम्भिक शिक्षा किस स्थान से सुरु हुई –

A. काशीB. फर्रुखाबाद
C. इन्दौरD. इनमें से कोई नही

8. इस महान् लेखिका का स्वर्गवास कब हुआ?

A. 11 सितम्बर, 1987B. 15 सितम्बर, 1987
C. 16 सितम्बर, 1985D. 10 सितम्बर, 1987

9. महादेवी जी की इसमे से कौन सी रचना है –

A. कानन-कुसुम  B. प्रेम-पथिक
C. सांध्यगीC. प्रेम-फुलवारी

10. इन सभी मे से कौन सी रचना महादेवी वर्मा की नही है –

A. यामाC. नीरजा 
D. उर्वशीD. दीपशिखा

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