Ramdhari Singh Dinkar Jivan Parichay-रामधारी सिंह दिनकर
नमस्कार दोस्तों, इस नए आर्टिकल में आपका स्वागत है, आज हम रामधारी सिंह दिनकर की जीवनी और उनके साहित्यिक लेखन पर चर्चा करेंगे। आपको इस आर्टिकल को अंत तक पढ़ना चाहिए क्योंकि इसे पढ़कर आप भी अपनी परीक्षा की तैयारी कर सकते हैं। इस लेख में आपको रामधारी सिंह दिनकर के बारे में सभी महत्वपूर्ण जानकारी पढ़ने को मिलेग। तो आइये इस आर्टिकल के बारे में विस्तार से जानते हैं। Ramdhari Singh Dinkar ka Jivan Parichay
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रामधारी सिंह दिनकर का संछिप्त परिचय
नाम | रामधारीसिंह ‘दिनकर’ |
जन्म | सन् 1908 ई० |
जन्म-स्थान | सिमरिया (बेगूसराय) |
शिक्षा | बी०ए० (ऑनर्स) |
भाषा | परिष्कृत खड़ीबोली |
शैली | प्रबन्ध और मुक्तक |
प्रमुख रचनाएँ | उर्वशी, कुरुक्षेत्र, सामधेनी, रेणुका, परशुराम की प्रतीक्षा |
निधन | सन् 1974 ई० |
साहित्य में स्थान | आधुनिक युग के सर्वश्रेष्ठ कवि |
रामधारी सिंह दिनकर जीवन परिचय-Ramdhari singh dinkar ki jivani
प्रखर राष्ट्रीय भावना वाले कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का जन्म 30 सितम्बर, 1908 को बिहार के मुंगेर जिले के सिमरिया गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री रविसिंह और माता का नाम श्रीमती मनरूप देवी था। प्राथमिक शिक्षा गांव के स्कूल से प्राप्त करने के बाद उन्होंने मोकामा घाट स्थित रेलवे स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की।
1932 ई. में पटना कॉलेज से बी.ए. किया। इसके बाद उन्होंने एक स्कूल में शिक्षक के रूप में काम किया। 1950 ई. में वे स्नातकोत्तर महाविद्यालय, मुजफ्फरपुर के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष नियुक्त किये गये। 1952 ई. में उन्हें राज्य सभा का सदस्य मनोनीत किया गया। कुछ समय तक वे भागलपुर विश्वविद्यालय में कुलपति के पद पर भी रहे। 1959 में उन्हें ‘संस्कृति के चार अध्याय’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
1964 ई. में उन्हें केन्द्र सरकार के गृह विभाग का सलाहकार नियुक्त किया गया। 1972 में ‘उर्वशी’ के लिए उन्हें ‘ज्ञानपीठ’ पुरस्कार मिला। भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया। 24 अप्रैल, 1974 को हिन्दी काव्य-गगन का यह दिनकर सर्वदा के लिए अस्त हो गया।
रामधारी सिंह दिनकर का साहित्यिक परिचय-Sahityik Parichay
रामधारी सिंह दिनकर जी ने हिन्दी के अलावा संस्कृत, बांग्ला, उर्दू आदि भाषाओं का भी गहन अध्ययन किया। दिनकर जी ने कवि के रूप में अपेक्षाकृत अधिक प्रसिद्धि प्राप्त की, लेकिन फिर भी गद्य की विभिन्न विधाओं पर उनका समान अधिकार था। दिनकर जी ने गद्य के क्षेत्र में हिन्दी साहित्य की उत्कृष्ट सेवा की। उनकी प्रसिद्ध पुस्तक संस्कृति के चार अध्यायों को साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत किया गया। उन्होंने कविता, संस्कृति, समाज, जीवन आदि विषयों पर बहुत उत्कृष्ट लेख लिखे।
उनके शानदार गद्य लेखन से हिंदी साहित्य को निबंध, यात्रा साहित्य और बाल साहित्य की अनेक अनूठी कृतियों की विरासत मिली। दिनकर जी ने आलोचनात्मक साहित्य में भी अपनी मौलिक प्रतिभा का परिचय दिया है। उनकी आलोचनात्मक पुस्तकों में भारतीय और पश्चिमी आलोचनात्मक सिद्धांतों की खूबसूरती से चर्चा की गई है। एक कवि के रूप में वे भारतीय साहित्य के इतिहास में सदा के लिए अमर हो गये। राष्ट्रीय भावनाओं पर आधारित कविताएँ लिखने के कारण वे राष्ट्रीय कवि के रूप में प्रसिद्ध हुए।
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रामधारी सिंह दिनकर की रचनाएँ
कृतियां – ‘प्रणभंग’, ‘रेणुका’, ‘रसवन्ती’, ‘द्वन्द्वगीत’, ‘धूप-छाँह’, ‘हुँकार’, ‘बापू’, ‘एकायन’, ‘इतिहास के ‘परशुराम की प्रतीक्षा’, ‘रश्मिरथी’, ‘नीलकुसुम’, ‘नीम के पत्ते’, ‘सीपी और शख’, ‘कुरुक्षेत्र’ तथा ‘उर्वशी’।’
निबंध संग्रह – अर्द्धनारीश्वर’, ‘रेती के फूल’, ‘बट पीपल’, ‘उजली आग’ आदि। दार्शनिक और सांस्कृतिक
निबंध – ‘धर्म’, ‘भारतीय संस्कृति की एकता’, ‘संस्कृति के चार अध्याय’।
आलोचना – ‘मिट्टी की ओर’, ‘शुद्ध कविता की खोज’ आदि.
काव्यगत विशेताएं
भाव पक्ष
- राष्ट्रीयता का स्वर – राष्ट्रीय चेतना के कवि दिनकर जी राष्ट्रवाद को सबसे बड़ा धर्म मानते हैं। उनकी रचनाएँ त्याग, बलिदान और देशभक्ति की भावना से परिपूर्ण हैं। दिनकर जी ने भारत के कण-कण को जागृत करने का प्रयास किया। उनमें हृदय और बुद्धि का अद्भुत समन्वय था। इसीलिए उनका काव्य रूप जितना सजग है, विचारक रूप भी उतना ही सजग है।
- प्रगतिशीलता – दिनकर जी ने अपने समय के प्रगतिशील दृष्टिकोण को अपनाया। उन्होंने उजड़े खलिहानों, जीर्ण-शीर्ण किसानों तथा शोषित मजदूरों के मार्मिक चित्र बनाये हैं। दिनकर जी की ‘हिमालय’, ‘तांडव’, ‘बोधिसत्व’, ‘कस्मै देवाय’, ‘पाटलिपुत्र की गंगा’ आदि रचनाएँ प्रगतिशील विचारधारा पर आधारित हैं।
- प्रेम एवं सौंदर्य – दिनकर जी ऊर्जा और क्रांति के कवि होते हुए भी सूक्ष्म कल्पनाओं के कवि हैं। उनके द्वारा लिखित काव्य ग्रंथ ‘रसवंती’ प्रेम और शृंगार की खान है।
- रस निरूपण – दिनकर जी की कविता का मूल स्वर आज भी कायम है। अत: वे मुख्यतः वीर रस के कवि हैं। उनके काव्य में श्रृंगार रस का रस भी सुन्दरता से परिपक्व हुआ है। रौद्र रस का प्रयोग वीर रस के सहायक के रूप में किया जाता है, करुण रस का प्रयोग आम लोगों की पीड़ा को चित्रित करने में किया जाता है और शांत रस का प्रयोग उन स्थानों पर भी किया जाता है जहां त्याग होता है।
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कला पक्ष
भाषा
दिनकर जी ने अपने गद्य साहित्य में शुद्ध, परिमार्जित, परिमार्जित एवं साहित्यिक भाषा- खड़ीबोली का प्रयोग किया है। उनकी भाषा विषयवस्तु और भाव के अनुरूप हो गयी है। इसका परिणाम यह है कि जहां गंभीर विषयों पर चर्चा हुई है, वहां की भाषा संस्कृत आधारित है। ‘यथा-संस्कृति के चार अध्याय’ जैसे गंभीर विश्लेषणात्मक कार्यों में दिनकर जी की भाषा संस्कृत आधारित है। इसके साथ ही दिनकर जी ने सरल विषयों पर भी अपने विचार व्यक्त करते समय सरल एवं व्यावहारिक भाषा का प्रयोग किया है। इस प्रकार दिनकर जी की भाषा में ओज, मधुरता, सरलता एवं सुगमता दृष्टिगोचर होती है।
शैली
रामधारी सिंह दिनकर जी के गद्य साहित्य में मुख्य रूप से निम्नलिखित शैलियाँ देखने को मिलती हैं –
- आलोचनात्मक शैली – यह शैली दिनकर जी की आलोचनात्मक रचनाओं में देखी जा सकती है। भाषा गंभीर विचारों से युक्त सरल एवं बोधगम्य है। इसके अलावा इस शैली में वाक्य रचना सुव्यवस्थित एवं सरल हो गयी है।
- भावात्मक शैली – दिनकर जी का काव्य हृदय गद्य साहित्य में भी अनेक स्थानों पर अभिव्यक्त हुआ है। ऐसे स्थानों पर उनकी भाषा कामुकता, काव्यात्मकता, रूपात्मकता और कोमलता के गुणों से युक्त प्रतीत होती है।
- विवेचनात्मक शैली – इस शैली में दिनकर जी के व्यक्तित्व की स्पष्ट झलक दिखाई देती है। गंभीर विषयों पर चर्चा करते समय इस शैली का प्रयोग किया जाता रहा है। प्रभावशीलता, गंभीरता, व्यापकता आदि गुणों का विशेष रूप से इस शैली में बोध हुआ है।
- सूक्ति शैली – जब लेखक अपनी गहरी सोच और व्यापक ज्ञान से ऐसे वाक्य लिखता है जिनका शाश्वत महत्व हो तो लौकिक शैली बनती है। दिनकर जी सूक्ष्म विषयों और गहन विचारशील विषयों के लेखक हैं, इसलिए उनके गद्य साहित्य में यह शैली अनेक स्थानों पर देखने को मिलती है। इसके अलावा काव्यात्मक शैली, उद्धरण शैली, वार्तालाप शैली, आत्मकथात्मक संबोधन आदि शैलियों का प्रयोग भी उनके साहित्य में देखने को मिलता है।
अलंकार एवं छन्द
उनकी कविता में अलंकारों का प्रयोग चमत्कार दिखाने के लिए नहीं, बल्कि कविता की व्यंजना बढ़ाने या कविता का सौंदर्य बढ़ाने के लिए किया गया है। उनके काव्य में उपमा, रूपक, अनुप्रास, चित्रण, विरोधाभास, उल्लेख, मानवीकरण आदि अलंकारों का प्रयोग स्वाभाविक रूप से हुआ है। पारंपरिक छंदों में दिनकर जी के पसंदीदा छंद हैं- गीतिका, सार, सारसी, हरिगीतिका, रोला, रूपमाला आदि। नए छंदों में अतुकांत मुक्तक, चतुष्पदी आदि का प्रयोग देखने को मिलता है। ‘प्रीति’ उनका स्वरचित छंद है, जिसका प्रयोग ‘रसवंती‘ में किया गया है। कहीं-कहीं लावनी, बहार, ग़ज़ल जैसी लोक छंदों का भी प्रयोग किया गया है।
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हिंदी साहित्य में स्थान
दिनकर जी हिन्दी साहित्य जगत के लिए एक विशेष निधि हैं। ‘संस्कृति के चार अध्याय’ जो हिंदी साहित्य के आधार स्तंभ हैं। दिनकर जी मानवता के पोषक एवं शोषक हैं। उन्होंने अपने साहित्य के माध्यम से समाज, संस्कृति और धर्म में व्याप्त रूढ़ियों का खंडन कर लोगों में भावनाएं भरने का प्रयास किया। राष्ट्रीय भावनाओं पर आधारित उनका साहित्य भारतीय साहित्य की अमूल्य निधि है। वह विश्व के महान साहित्यकारों में से हैं।
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रामधारी सिंह दिनकर की पहली रचना कौन सी है?
1928 में, दिनकर की कविता की पहली पुस्तक, जिसका नाम “विजय संदेश” था, जो जारी की गई। उसके बाद उन्होंने बहुत सारी रचनाएँ लिखीं। ‘परशुराम की प्रतीक्षा’, ‘हुंकार’ और ‘उर्वशी’ उनकी कुछ सबसे प्रसिद्ध कृतियाँ हैं। 1959 में उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला।
रामधारी सिंह दिनकर क्यों प्रसिद्ध है?
उनका जन्म 23 सितंबर, 1908 को बिहार में हुआ था। समकालीन युग का सर्वश्रेष्ठ वीर कवि दिनकर को व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है। उनकी कविताओं ने आजादी की लड़ाई के प्रति जागरूकता पैदा की।
भारत का राष्ट्र कवि कौन है?
सबसे महत्वपूर्ण आधुनिक हिंदी कवियों में से एक रामधारी सिंह दिनकर (1908-1974) हैं, जिन्हें उनके उपनाम दिनकर के नाम से भी जाना जाता है। उनकी कविता में एक योद्धा की भावना का प्रतीक था, और भारतीय स्वतंत्रता से पहले के वर्षों में, उनके देशभक्तिपूर्ण लेखन ने उन्हें राष्ट्रकवि (शाब्दिक रूप से, “राष्ट्रीय कवि”) की उपाधि दी।
कुरुक्षेत्र महाकाव्य के रचयिता कौन है?
रामधारी सिंह दिनकर, जिन्हें अक्सर “दिनकर” के नाम से जाना जाता है, “कुरुक्षेत्र” के लेखक हैं। 1946 में कुरूक्षेत्र रचना प्रकाशित हुई। यह कविता मुद्दों को संबोधित करती है। दिनकर की अन्य कृतियों में रश्मिरथी, उर्वशी, रेणुका, बापू आदि शामिल हैं।
दिनकर जी की शैली के प्रधान कौन है?
दिनकर जी द्वारा प्रयुक्त खड़ीबोली पूर्णतः साहित्यिक, संस्कृत-आधारित, सीधी, परिपक्व, समझने योग्य और परिष्कृत है। इसके अतिरिक्त उन्होंने तद्भव तथा देशी मुहावरों, मुहावरों तथा कहावतों का प्रयोग सहज ढंग से किया है। उनकी शैलियाँ मुख्यतः विश्लेषणात्मक, आलोचनात्मक, भावनात्मक और दार्शनिक हैं।